फ़िल्म समीक्षा:दसविदानिया

अवसाद में छिपा हास्य
-अजय ब्रह्मात्मज
अलग मिजाज की फिल्म को पसंद करने वालों के लिए दसविदानिया उपहार है। चालू फार्मूले और स्टार के दबाव से बाहर निकल कर कुछ निर्देशक ऐसी फिल्में बना रहे हैं। शशांत शाह को ऐसे निर्देशकों में शामिल किया जा सकता है। फिल्म का नायक 37 साल का है। शादी तो क्या उसकी जिंदगी में रोमांस तकनहीं है। चेखव की कहानियों और हिंदी में नई कहानी के दौर में ऐसे चरित्र दिखाई पड़ते थे। चालू फिल्मों में इसे डाउन मार्केट मान कर नजरअंदाज किया जाता है।
अमर कौल एक सामान्य कर्मचारी है। काम के बोझ से लदा और मां की जिम्मेदारी संभालता अपनी साधारण जिंदगी में व्यस्त अमर। उसे एहसास ही नहीं है कि जिंदगी के और भी रंग होते हैं। हां, निश्चित मौत की जानकारी मिलने पर उसका दबा अहं जागता है। मरने से पहले वह अपनी दस ख्वाहिशें पूरी करता है। हालांकि इन्हें पूरा करने के लिए वह कोई चालाकी नहीं करता। वह सहज और सीधा ही बना रहता है।
अमर कौल की तकलीफ रूलाती नहीं है। वह उदास करती हैं। सहानुभूति जगाती हैं। चार्ली चैप्लिन ने अवसाद से हास्य पैदा करने में सफलता पाई थी। दसविदानिया उसी श्रेणी की फिल्म है। कमी यही है कि इसमें अवसाद ज्यादा गहरा नहीं हो पाता। विसंगतियां अधिक तकलीफदेह नहीं हैं। फिर भी विनय पाठक ने अपने अभिनय के दम पर बांधे रखा है।
दसविदानिया संबंध और एहसास की फिल्म है जो सामान्य व्यक्ति के छोटे इरादों की भावनात्मक गहराई को व्यक्त करती है।
मुख्य कलाकार : विनय पाठक, नेहा धूपिया, सरिता जोशी, रजत कपूर, सौरभ शुक्ला आदि।
निर्देशक : शशांत शाह
तकनीकी टीम : निर्माता- आजम खान और विनय पाठक, कथा-पटकथा- अरशद सैयद, गीत - कैलाश खेर, संगीत - कैलाश, परेश, नरेश

Comments

azdak said…
सिंह नहीं, शशांत शाह.
chavannichap said…
galti ke liye maafi.abhi theek karta hoon.

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