अलग मजा है एक्टिंग में-संजय मिश्रा


-अजय ब्रह्मात्मज
    संजय मिश्रा से राजस्थान के मांडवा में मुलाकात हो गई। वे वहां डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म ‘जेड प्लस’ की शूटिंग के लि सीधे हरिद्वार से आए थे। हरिद्वार में वे यशराज फिल्म्स और मनीष शर्मा की फिल्म ‘दम लगा कर हइसा’ की शूटिंग कर रहे थे। एक अंतराल के बाद संजय मिश्रा फिर से सक्रिय हुए हैं। उन्होंने एक्टिंग पर ध्यान देना शुरु किया है। सुभाष कपूर की ‘फंस गए रे ओबामा’ की कामयाबी के बाद उनके पास अनगिनत फिल्मों के ऑफर ो। उन सभी को किनारे कर वे डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठ गए। उन्होंने ‘प्रणाम वालेकुम’ नाम की अनोखी फिल्म का निर्देशन किया। यह फिल्म अभी प्रदर्शन के इंतजार में है। फिलहाल उनकी फिल्म ‘आंखें देखी’ रिलीज हो रही है। इसका निर्देशन रजत कपूर कर रहे हैं।
    डॉ द्विवेदी की ‘जेड प्लस’ में छोटी भूमिका के लिए राजी हो की वजह उन्होंने खुद ही बतायी कि मुंबई आने के बाद सबसे पहले डॉ द्विवेदी के ही सीरियल ‘चाण्क्य’ में पहली बार कैमरे के सामने आने का मौका मिला था। डॉ द्विवेदी ने पिछली फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ के लिए भी मुझे बुलाया था,लेकिन व्यस्तताओं की वह से उसे मैं नहीं कर सका था। इस बाद मैं यह ऑफर नहीं छोडऩा चाहता था। वैसे ‘आंखों देखी’ भी उनके हाथों से निकल गई थी। रजत कपूर ने समय पर संजय मिश्रा का जवाब नहीं मिलने पर नसीरूद्दीन शाह से बात कर ली थी। वे राजी भसी हो गए थे। तभी संजय मिश्रा को सुधि आई? उन्होंने रजत मिश्रा को कुरेदा तो पता चला कि फिल्म तो नसीर भाई कर रहे हैं। संजय मिश्रा के जोर देने पर रजत ने आश्वस्त किया कि वे नसीर भाई से पूछेंगे। अगर उन्होंने आप के लिए फिल्म छोड़ दी तो आप फिर से आ जाएंगे। जल्दी ही शुभ सूचना मिली कि संजय मिश्रा को केंद्रीय भूमिका देने की शत्र्त पर नसीरूद्दीन शाह ने फिल्म छोड़ दी।
    संजय मिश्रा जोर देकर कहते हैं कि नसीर भाई जैसे सीनियर कलाकार ही ऐसी उदारता दिखा सकते हैं। वे आगे बताते हैं कि मुझे इंडस्ट्री में कामेडियन समझा जाता है और उसी तरह के रोल मिलते हैं। रजत कपूर ने थोड़ा अलग होकर मेरे बारे में सोचा। उन्होंने ‘फंस गए रे ओबामा’ के समय ही कहा था कि वे मेरे लिए एक फिल्म लिख रहे हैं। मैंने तब इसे गंभीरता से नहीं लिया था। ‘आंखों देखी’ मेरे करिअर की अहम फिल्म है। मैं इसमें बाबूजी का किरदार निभा रहा हूं। वे एक दिन फैसला करते हैं कि अब से वे लोगों की कही-सुनी बातों पर यकीन नहीं करेंगे। वे केवल आंखों देखी बातों को ही सच मानेंगे। यहां से फिल्म और बाबूजी के रिश्तों में बदलाव आता है। इस फिल्म गलियों वाली दिल्ली मिलेगी,जहां मोहल्ला कल्चर अभी तक जिंदा है। यह वसंत कुंज की दिल्ली नहीं है।
    अपने करिअर में पहचान और मुकाम हासिल कर चुके संजय मिश्रा जरूरी मानते हैं कि काम में मजा आए। वे कहते हैं,अब मैं अपनी खुशी के लिए काम करना चाहता हूं। मैं किसी और को जवाब नहीं देना चाहता। फिल्म निर्देशन का मेरा अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा। फिल्म निर्देशन के साथ इतने रायते रहते हैं कि सभी को संभालना मुश्किल हो जाता है। एक्टिंग अच्छा है। अपना काम करो और जाओ। संजय मिश्रा स्वीकार करते हैं कि उनके जैसे एक्टर के लिए माहौल बेहतर हुआ है। नसीरूद्दीन शाह से अभी तक आए थिएटर के एक्टरों ने माहौल बदलने में बड़ा योगदान किया है। हम सभी ने साबित किया है। यही वजह है कि हमें भी केंद्रीय भूमिकाएं मिल पा रही हैं। हम यह भा जानते हैं कि हमारे साथ बड़े बजट की कमर्शियल फिल्म अभी नहीं बनायी जा सकती और न 100 करोड़ के बिजनेस की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन कौन जाने भविष्य में क्या हो? अभी जैसी फिल्में कभी-कभी हिट हो जा रही हैं,उससे इंडस्ट्री भी चौंकी हुई है।

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