फिल्‍म समीक्षा : पिज्‍जा

- अजय ब्रह्मात्‍मज 
निर्माता बिजॉय नांबियार और निर्देशक अक्षय अक्किनेनी की फिल्म 'पिज्जा' तमिल में बन चुकी इसी नाम की फिल्म की रीमेक है। अक्षय अक्किनेनी ने हिंदी दर्शकों के लिहाज से स्क्रिप्ट में कुछ बदलाव किए हैं। उन्होंने अपने कलाकारों अक्षय ओबरॉय और पार्वती ओमनाकुट्टन की खूबियों व सीमाओं को ध्यान में रखते हुए कथा बुनी है। 'पिज्जा' हॉरर फिल्म है, इसलिए हॉरर फिल्म के लिए जरूरी आत्मा, भूत-प्रेत, खून-खराबा सारे उपादानों का इस्तेमाल किया गया है। अक्षय की विशेषता कह सकते हैं कि वे इन उपादानों में रमते नहीं हैं। बस आवश्यकता भर उनका इस्तेमाल कर अपनी कहानी पर टिके रहते हैं।
'पिज्जा' डिलीवरी ब्वॉय कुणाल और उसकी प्रेमिका निकिता की प्रेम कहानी भी है। दोनों इस शहर में अपनी जगह बनाने की कोशिश में हैं। निकिता अपनी कल्पना से घोस्ट स्टोरी लिखा करती है। उसकी कल्पना एक समय पर इतनी विस्तृत और पेचीदा हो जाती है कि वह कुणाल के साथ खुद भी उसमें शामिल हो जाती है। इस हॉरर फिल्म में अक्षय ने जबरदस्त रहस्य रचा है। आखिरी दृश्य तक फिल्म बांधे रखती है और जब रहस्य खुलता है तो दर्शक भी सरप्राइज महसूस करते हैं। फिल्म की कहानी पर बात करने से भेद खुल जाएगा, इसलिए बेहतर है कि आप स्वंय इस रहस्य के राजदार बनें।
अक्षय अक्किनेनी ने 'पिज्जा' 3 डी में शूट की है। उन्होंने बैकग्राउंड के लिए साउंड की नई तकनीक इस्तेमाल की है। इन दोनों तकनीकी खूबियों से यह फिल्म नए किस्म का प्रभाव डालती है। नयापन कलाकारों के चुनाव और दृश्यों की संरचना में भी है। उनकी वजह से फिल्म में ताजगी बनी रहती है। हिंदी की सामान्य हॉरर फिल्मों की तरह 'पिज्जा' सिर्फ डराने की कोशिश नहीं करती। यह अपनी रोचकता और रहस्यात्मकता से इंटरेस्ट बनाए रखती है।
कुणाल की भूमिका में अक्षय ओबेरॉय ने फिल्म के लिए जरूरी डर के भाव को पकड़ा है। चीखने-चिल्लाने से अधिक वे इन दृश्यों में जूझते दिखाई पड़ते हैं। 'पिज्जा' पारंपरिक तंत्र-मंत्र का भी इस्तेमाल नहीं करती और न ही किसी वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक तर्क का सहारा लेती है। यह शुद्ध काल्पनिक हॉरर फिल्म है, जो नई तरह से कही गई है।
अवधि: 107 मिनट
तीन स्‍टार ***

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