दरअसल : ऊपर आका,नीचे काका

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-अजय ब्रह्मात्मज
    राजेश खन्ना की लोकप्रियता और उसके प्रभाव को शब्दों में नहीं बताया जा सकता। आठवें दशक के आरंभ में जवान हो रही पीढ़ी ने इस लोकप्रियता को राजेश खन्ना की फिलमों के जरिए महसूस किया है। अभी डिजायनर और स्टायलिस्ट आ गए हैं,लेकिन किसी भी कथित स्टार या सुपरस्टार के पहनावे की नकल नहीं होती। एक दौर था जब सभी राजेश खन्ना की शैली के गुरू कट कुर्ता पहनते थे। आलों का उनकी शैली में काढ़ते थे और आईने के सामने खड़े होकर पलकों को झपकाते हुए मीठी मुस्कान का रिहर्सल करते थे। राजेश खन्ना पे पूरी पीढ़ी को अपना दीवाना बना दिया था। लड़कियों की दीवानगी के किस्से तो और अलग एवं रोमांचकारी हैं। राजेश खन्ना की जिंदगी और मौत दोनों ने उनके प्रशंसकों का आकर्षित किया। सन् 2012 के जुलाई महीने में निधन के बाद मुंबई की सडक़ों पर उनकी अंतिम यात्रा में शामिल प्रशंसकों के समूह को भीड़ कहना अनुचित होगा। आर्शीवाद से श्मशन की उस यात्रा में उनके प्रशंसक उनकी यादों को तिरोहित करने नहीं,बल्कि संयोजित करने आए थे।
    सुपरस्टार राजेश खन्ना ने लोकप्रियता की असीम ऊंचाई देखी और फिर अपनी ही लोकप्रियता का उस ऊंचाई से फिसलते देखा। कभी कहा जाता था-ऊपर आका,नीचे काका। काका ने आका सा महत्व हासिल कर लिया था,लेकिनअपने स्खलन के वे स्वयं गवाह थे। हारा मन अपनी हार स्वीकार नहीं करता। उसे उम्मीद रहती है कि मरने से पहले वह एक बार फिर उछलेगा या छलांग मार लेगा। काका को भी उम्मीद थी,लेकिन ऐसा हो नहीं सका। आईफा के  अवार्ड समारोह में मकाओ में उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया था। यह अवार्ड अमिताभ बच्चन के हाथों उन्हें सौंपा गया था। जिस किसी ने भी इस अवार्ड समारोह का प्रसारण देखा होगा,उसने जरूर राजेश खन्ना का आर्तनाद सुना होगा। पराजय की रुदन में आंसू भले ही न दिखें,लेकिन वह सामने बैठे व्यक्ति को विह्वल करती है। राजेश खन्ना ने उस रात जता दिया था कि वे पराजित हो गए हैं। समय उनके साथ नहीं रहा। बाद में यह अवार्ड अपने दोस्तों को दिखा कर वे कहा करते थे कि इसे अमिताभ बच्चन ने दिया था। अपनी हार की यह उनकी पहचान थी। उनके करिअर पर नजर डालें तो स्पष्ट दिखता है कि उन्होंने अपनी ही लोकप्रियता की अवहेलना की। लोगों के प्यार की कद्र नहीं की। वे ऐसे आत्ममुग्ध और आत्महंता व्यक्ति के तौर पर नजर आते हैं,जो अपने ही स्टारडम की चमक में लुप्त और अदृश्य हो गया।
    राजेश खन्ना के व्यक्तित्व को जानने,समझने और लिखने की सफल कोशिश गौतम चिंतामणि ने की है। उन्होंने द लोनलीनेस ऑफ बीइंग राजेश खन्ना : डार्क स्टार नामक पुस्तक लिखी है। पिछली सदी के एक स्याह सितारे की यह जीवनी उतार-चढ़ाव से भरी उसकी यात्रा से अधिक उसकी छवि का विश्लेषण करती है। इसमें उनकी अप्रतिम कामयाबी की परछाइयां है। इन परछाइयों में खोती उनकी छवि है। गौतम ने राजेश खन्ना का एकाकीपन के देवता के तौर पर नहीं देखा है। उन्होंने जतिन खन्ना से राजेश खन्ना बने उस व्यक्ति और कलाकार के बात-व्यवहार से ही स्खलन को समझने की कोशिश की है। गौतम ने सिलसिलेवार तरीके से उनकी फिल्मों का उल्लेख किया है। उनके निभाए किरदारों की भी व्याख्या की है। साथ ही हर फिल्म के साथ उनमें आ रहे बदलावों को भी वे रेखांकित करते चलते हैं।  यह पुस्तक राजेश खन्ना के व्यक्त्त्वि और व्यवहार की समझ देती है। यों कई बार लगता है कि भटकने या किसी और डर से गौतम विश्लेषण और टिप्पणी पर स्वयं ही रोक लगा देते हैं। इस संयम में कुछ चीजेें खुलते-खुलते ढक जाती हैं।
    गौतम चिंतामणि ने उपलब्ध सामग्रियों और जानकारियों के आधार पर यह पुस्तक तैयार की है। राजेश खन्ना के करीबियों से उन्हें पूरा सहयोग नहीं मिला है। भारतीय परिवेश में जीवनियां और आत्मकथाएं अस असहयोग के कारण अधूरी लगती हैं। स्टार या अन्य फिल्मी हस्तियां स्वयं कुछ नहीं लिखतीं और बतातीं। करीबी भी सच बताने से अधिक छिपाने की कोशिश करते हैं। इस पृष्ठभूमि में गौतम चिंतामणि का यह प्रयास सराहनीय है। उन्होंने राजेश खन्ना की लोकप्रियता के साए में पनपे राजेश खन्ना के अकेलेपन और निर्वासन को यथासंभव प्रकाशित किया है।

द लोनलीनेस ऑफ बीइंग राजेश खन्ना : डार्क स्टार
लेखक-गौतम चिंतामणि
हार्पर कालिंस पब्लिशर्स,इंडिया

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