फिल्‍म समीक्षा हवाईजादा

अजय ब्रह्मात्मज
निर्देशक: विभु पुरी
स्टार: 2.5
विभु पुरी निर्देशित 'हवाईजादा' पीरियड फिल्म है। संक्षिप्त साक्ष्यों के आधार पर विभु पुरी ने शिवकर तलपड़े की कथा बुनी है। ऐसा कहा जाता है कि शिवकर तलपड़े ने राइट बंधुओं से आठ साल पहले मुंबई की चौपाटी में विश्व का पहला विमान उड़ाया था। अंग्रेजों के शासन में देश की इस प्रतिभा को ख्याति और पहचान नहीं मिल पाई थी। 119 सालों के बाद विभु पुरी की फिल्म में इस 'हवाईजादा' की कथा कही गई है।
पीरियड फिल्मों के लिए आवश्यक तत्वों को जुटाने-दिखाने में घालमेल है। कलाकारों के चाल-चलन और बात-व्यवहार को 19 वीं सदी के अनुरूप नहीं रखा गया है। बोलचाल, पहनावे और उपयोगी वस्तुओं के उपयोग में सावधानी नहीं बरती गई है। हां, सेट आकर्षक हैं, पर सब कुछ बहुत ही घना और भव्य है। ऐसे समय में जब स्पेस की अधिक दिक्कत नहीं थी, इस फिल्म को देखते हुए व्यक्ति और वस्तु में रगड़ सी प्रतीत होती है।
शिवकर तलपड़े सामान्य शिक्षा में सफल नहीं हो पाता, पर वह दिमाग का तेज और होशियार है। पिता और भाई को उसके फितूर पसंद नहीं आते। वे उसे घर से निकाल देते हैं। उस रात वह दो व्यक्तियों से टकराता है। एक है सितारा, जो पहली मुलाकात के बाद ही उसके दिल में बिंध जाती है और दूसरे सनकी शास्त्री...जिन्हें लगता है कि शिवकर उनके प्रयोगों को आगे ले जा सकता है। प्रेम और प्रयोग के दो छोरों के बीच झूलते शिवकर तलपड़े की प्राथमिकता बदलती रहती है। नतीजतन कहानी रोचक होने के बावजूद प्रभावित नहीं कर पाती। इसकी वजह शिवकर तलपड़े के चरित्र निर्वाह में रह गई कमियां और थोपी गई खूबियां हैं।
ऐसे समय में जब सार्वजनिक जीवन में एक खास राजनीति और राष्ट्रीय भावना से प्रेरित विचार ने सभी को विस्मित कर रखा है, ऐसी फिल्म का आना भ्रम को बढ़ाता ही है। शिवकर तलपड़े के प्रयोग और उपलब्धि के पर्याप्त ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं हैं। चूंकि 'हवाईजादा' काल्पनिक कथा नहीं है, इसलिए भ्रम और गहरा होता है। लेखक-निर्देशक ने सिनेमाई छूट लेते हुए राष्ट्रवाद, देशभक्ति और वंदे मातरम भी फिल्म में शामिल कर दिया है। कहना मुश्किल है कि 1895 में मुंबई में वंदे मातरम के नारे लगते होंगे।
अतीत की ऐसी कथाएं किसी भी देश के इतिहास के संरक्षण और वर्तमान के लिए बहुत जरूरी होती हैं, लेकिन उन्हें गहरे शोध और साक्ष्यों के आधार पर फिल्म की कहानी लिखी है। शिवकर तलपड़े और उनके सहयोगी चरित्र थोड़े नाटकीय और कृत्रिम लगते हैं। सनकी वैज्ञानिक शास्त्री का किरदार ऐसा ही लगता है। फिल्म में ही दिखाया गया है कि वेदों और ऐतिहासिक ग्रंथों के आधार पर शास्त्री ने वैमानिकी की पुस्तक तैयार की थी, फिर उस पुस्तक के आधार पर विमान बनाने और उड़ाने का श्रेय अकेले शिवकर तलपड़े को देना उचित नहीं लगता।
विभु पुरी अपनी सोच और ईमानदारी से उन्नीसवीं सदी के अंतिम वर्षों का माहौल रचते हैं। इसमें उनके आर्ट डायरेक्टर अमित रे ने भरपूर सहयोग दिया है। उन्होंने पीरियड को वर्तमान संदर्भ दिया है, लेकिन उसकी वजह से तत्कालीन परिस्थितियों के चित्रण में फांक रह गई है। उन्नीसवीं सदी की मुंबई की बोली और माहौल रचने में भी फिल्म की टीम की मेहनत सराहनीय है।
कलाकारों में आयुष्मान खुराना ने शिवकर तलपड़े की चंचलता और सनकी मिजाज को पकडऩे की अच्छी कोशिश की है। कहीं-कहीं वे किरदार से बाहर निकल जाते हैं। शास्त्री के रूप में मिथुन चक्रवर्ती कृत्रिम और बनावटी लगते हैं। पीरियड फिल्म में उनका उच्चारण और लहजा आड़े आ जाता है। पल्लवी शारदा कुशल नृत्यांगना हैं। उनके अभिनय के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती। बाल कलाकार नमन जैन प्रभावित करते हैं। उनकी मासूमियत और संलग्नता प्रशंसनीय है।
'हवाईजादा' में गीतों के अत्यधिक उपयोग से कथा की गति बाधित होती है। नायक के समाज प्रेम और प्रयोग का द्वंद्व चलता रहता है।
अवधि: 147 मिनट

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