दरअसल : चुंबन का प्रचार

दरअसल,12 फरवरी 15

-अजय ब्रह्मात्मज
    अभिषेक कपूर की ‘फितूर’ की शूटिंग कश्मीर में चल रही है। इस फिल्म में आदित्य राय कपूर और कट्रीना कैफ हैं। यह चाल्र्स डिकेंस के उपन्यास ‘ग्रेट एक्सपेक्टेशंस’ पर आधारित है। अभिषेक कपूर ने कश्मीर की पृष्ठभूमि दी है। उपन्यास को आज के समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाने के लिए उन्होंने कुछ नया जोड़ा ही होगा। फिल्म से संबंधित खबरें तो लगातार आ रही थीं। पहली बार तस्वीर आई है। इस तस्वीर में कट्रीना कैफ और आदित्य राय कपूर चुंबन में लिप्त हैं। हिंदी फिल्मों में जब भी चुंबन की चर्चा होती है तो यही लिखा जाता है कि फलां एक्टर ने फलां एक्ट्रेस को चूमा। क्या चुंबन महज एकाकी और पुरुषोचित प्रक्रिया है? इस पर फिर कभी बात करेंगे। फिलहाल हिंदी फिल्मों में इन दिनों चुंबन का जोरदार प्रचार किया जा रहा है। गौर करें कि ‘फितूर’ की तस्वीर प्रोडक्शन कंपनी ने नहीं जारी की है। यह किसी दर्शक की खिंची हुई तस्वीर है,लेकिन इसे चुंबन समाचार के तौर पर ही मीडिया ने प्रसारित किया। तात्पर्य यह कि फिल्मकार और दर्शक दोनों ही चुंबन चर्चा में रुचि ले रहे हैं।
    याद करें तो हिंदी फिल्मों में सायलेंट सिनेमा के दौर से ही चुंबन के दृश्य आते रहे हैं। तब भी उनका प्रचार किया गया। सबूत यह है कि 1933  में बनी ‘कर्मा’ की जो तस्वीर हर जगह दिखाई देती है,उसमें देविका रानी और हिमांशु राय का चुंबन दृश्य है। यह चुंबन दृश्य पर्दे पर चार मिनट तक रहा था। वैसे भारतीय सिनेमा में चुंबन का पहला दृश्य सीता देवी और चारू राय के बीच का था। फिल्म थी ‘थ्रो ऑफ डायस’। सिनेमा के आरंभिक दौर में चुंबन को लेकर ऐसी हाय-तौबा नहीं मचती थी। अभिनेता और अभिनेत्री चुंबन दृश्यों को लकर सहज रहते थे। आजादी के पहले की फिल्मों में चुंबन के प्रति कोई सेंसरशिप नहीं थी। आजादी के बाद देश में नियम-कानून बने। सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 में आया। तब नीति निर्धारकों को लगा कि भारतीय दर्शकों के लिए चुंबन उचित नहीं है। नतीजतन हिंदी फिल्मों में चुंबन पर पाबंदी सी लग गई। निर्देशकों को नायक-नायिका की अंतरंगता दिखाने के लिए प्रतीकों और बिंबों का सहारा लेना पड़ा।
    राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ आने तक निर्देशक फूलों के हिलने-मिलने या फुलवारी में तेज हवा चलते के दृश्यों से नायक-नायिका की अंतरंगता दिखाते थे। कुछ फिल्मों में पक्षियों के चोंच मिलाने के सीन होत थे। आज पुरानी फिल्मों को देखते समय ऐसे दृश्यों पर हमें हंसी आती है,लेकिन कभी यह बड़ी मजबूरी थी। राज कपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ में एक रूसी एक्ट्रेस को चूमा था। यहां से निर्देशकों की हिम्मत बढ़ी। राज कपूर ने ‘बॉबी’ में ऋषि कपूर और डिंपल कपाडिय़ा के बोल्ड चुंबन दृश्य रखे थे। उसके बाद तो मानो छूट मिल गई। राज कपूर के साथ अन्य फिल्मकारों ने भी अपनी फिल्मों में चुंबन को महत्व दिया। राज कपूर की फिल्मों में ऐंद्रिकता रहती थी,लेकिन वे उन्हें अश्लील या फूहड़ नहीं होने देते थे। यही बात दूसरे फिल्मकारों के बारे में नहीं कही जा सकती। फिर एक दौर ऐसा आया कि नए कमसिन स्टारों की लांचिंग लव स्टोरी फिल्मों में किसिंग सीन अनिवार्य हो गया। आज भी उसका पालन हो रहा है। हीरो-हीरोइन के एक हुनर के तौर पर चुंबन भी पेश किया जाता है।
    21 वीं सदी में मल्लिका सहरावत ने ‘ख्वाहिश’ फिल्म के 17 चुंबनों के साथ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया। 19 चुंबनों की वजह से वह चर्चा में रहीं। अपनी अगली फिल्म ‘मर्डर’ में उन्होंने इमरान हाशमी को चूमा। इमरान हाशमी अपनी फिल्मों के चुंबन दृश्यों की वजह से सीरियल किसर के तौर पर मशहूर हुए। पिछले पांच सालों में चुंबन का उपयोग पब्लिसिटी के लिए किया जाने लगा है। हर नई फिल्म में चुंबन का प्रचार किया जाता है। लिप लॉक की तस्वीरें छपती हैं। दबाव इतना बढ़ गय है कि चुंबन से परहेज करने वाले शाह रुख खान को भी ‘जब तक है जान’ में कट्रीना कैफ को चूमना पड़ा। इधर सार्वजनिक जीवन में स्त्री-पुरुषों के चुंबन और आलिंगन को सामान्य व्यवहार के तौर पर देखा जाने लगा है,लेकिन फिल्मों के लोग चुंबन की गर्माहट फैला कर दर्शक जुटाने से बाज नहीं आते।

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