फिल्‍म समीक्षा :रॉय : सौरभ द्विवेदी


वैलंटाइंस डे के नाम पर अप्रैल फूल बनाया रॉय ने

सौरभ द्विवेदी |  13 फरवरी 2015 | अपडेटेड: 18:16 IST


रॉय का पोस्टर
फिल्म रिव्यूः रॉय
एक्टर- अर्जुन रामपाल, जैकलिन फर्नांडिस , रणबीर कपूर, अनुपम खेर
डायरेक्टरः विक्रमजीत सिंह
ड्यूरेशनः 2 घंटा 27 मिनट
रेटिंगः 5 में 1 स्टार
एक लंबी सांस लें. ध्यान केंद्रित करें. क्या नजर आ रहा है. हैंडसम रणबीर कपूर. सब भरम है. गौर से देखें. अब रौशनी क्या दिखा रही है. ओह, अर्जुन रामपाल. हां. अब धीमे धीमे आंखें मलें. सब लोग एक साथ ओउम कहते हुए सांस छोड़ें. आपका भ्रम छंट गया है. भाईसाहब और बहिन जी. एआईबी पर मुकदमा हो चुका है. इसलिए पूरी तरह से शालीन बना हुआ हूं. वर्ना तो रॉय देखकर जिस ढंग से रैंकने का मन कर रहा है, आप उसका बस अंदाजा ही लगा सकते हैं. इतनी अझेल, खखोर, चाट फिल्म है कि जिंदा रह गया, बस यही कमाल समझिए. इस फिल्म को देखते वक्त पक्का सेंसर बोर्ड वाले भी सो गए होंगे. इसीलिए सिगरेट वाले इतने सीन्स बिना कट के पास हो गए. तुर्रा यह कि कोने में लिखा आ रहा था. स्मोकिंग किल्स. लगता है कि स्याही खत्म हो गई थी. वर्ना लिखना तो ये था कि स्मोकिंग किल्स. बट इफ यू सर्वाइव, रॉय विल किल यू.
आप पहले तो कहानी के नाम पर जो झाम पिलाया गया है, वह समझ लें. आसानी रहेगी मेरी तकलीफ का गुइंया बनने में. एक बहुतई कामुक किस्म के कलाकार हैं कबीर. एक चोर वाली फिल्म बनाते हैं. चल गई है, तो मार सीक्वल पर सीक्वल पेले जा रहे हैं उसका. मगर इस बार प्रॉड्यूसर बोला, पहले स्क्रिप्ट बताओ. तो कबीर कहानी खोजने मलेशिया गए हैं. यहीं पर लंदन की सुंदर बहुरिया मटीरियल डायरेक्टर आयशा आई हैं. कबीर को आयशा से भी लस्ट वाला लव हो जाता है. मगर आयशा को कबीर के लिजलिजे इरादों की भनक है. मगर वह शातिर ही क्या जो चुक जाए. आयशा फंस जाती है. कबीर को कहानी मिल जाती है. चोर की. रॉय की. एंटर रणबीर. फिल्म में फिल्म शुरू हो जाती है. रॉय को टिया से प्यार है. मगर टिया भी जैकलिन है. पर जैकलिन तो आयशा है. और आयशा तो कबीर के साथ है. घूम गए न. बस ऐसे ही रॉय की कहानी घुमा घुमाकर देती रहती है.
जो लोग रणबीर कपूर के लिए रॉय देखने जाएंगे. उनका बकरा ढाई घंटे में फैली किस्तों में कटेगा. फिल्म अर्जुन और जैकलिन की है. चूंकि जैकलिन के दो दो किरदार हैं. मगर अर्जुन को दो दो बार देखते, तो जनता को दस्त लग जाती. इसलिए एक रोल रणबीर को मिल गया. रणबीर कन्याओं को यम्मी लगेंगे. डैशिंग, हैंडसम वगैरह वगैरह. दाढ़ी जमती है. पर एक्टिंग देख ऐसा लगता है, जैसे सीन ठीक से समझाया नहीं गया. एक किस्म का जबरन का तनाव है उनके चेहरे पर. गोया कुछ जबरन रोकना पड़ा हो.
अर्जुन रामपाल फिल्म के लीड हीरो हैं. एक्टर नहीं कहूंगा. क्योंकि एक्टर एक्टिंग करता है. पर अर्जुन ये गंदा काम नहीं करता. हां, तो हीरो कतई नहीं जमा. हीरोइन भी उसी के पाले में है. जैकलिन कटरीना कैफ का पाइरेटेड वर्जन हैं. दोनों ही ऐसे बोलती हैं, जैसे जिमीकंद खाकर आई हों. फंसी फंसी अटकी आवाज. एक्सेंट जस्टीफाई करने के लिए लंदन रिटर्न बताकर जनता को तिली लिली धप्पू हर बार की तरह यहां भी किया गया है. और हां. एक्टिंग में टाइम जैकलिन ने भी वेस्ट नहीं किया है. बाकी चवन्नी साइज रोल में अनुपम खेर और और रजत कपूर हैं.
फिल्म रॉय क्या है. प्रतिभा का विस्फोट. सिनेमा का चमत्कार. एक लव स्टोरी. एक क्राइम स्टोरी. वैलंटाइंस डे पर लोगों को अप्रैल फूल बनाने का स्मार्ट तरीका. कुछ भी कह सकते हैं आप. जो लोग अपने पार्टनर से ब्रेकअप करना चाहते हैं और कोई मुनासिब वजह नहीं मिल रही. वह यह फिल्म रॉय देखने जाएंगे. क्लाइमेक्स से पहले ही आपकी आपसी राय बदल जाएगी.
रॉय की कहानी कमजोर, कन्फ्यूजिंग है. स्क्रीनप्ले बेतरह फैला हुआ है. एडिटिंग चुस्त नहीं है. इसलिए फिल्म बोरिंग और खिंची हुई हो जाती है. डायलॉग्स में फंडू बनने की कोशिश अकसर औंधे मुंह गिरती है. डायरेक्टर विक्रमजीत सिंह पहले बैंकर थे. तो उन्हें उनके पुराने धंधे के इश्टाइल में एक सुझाव. इंश्योरेंस इस सब्जेक्ट टु मार्केट रिस्क. प्लीज रीड द डॉक्युमेंट केयरफुली. और इस डॉक्युमेंट की पहली लाइन है, कहानी. कहानी चाहिए फिल्म बनाने के लिए. क्रैप नहीं.
पूर्ण विराम से पहले एक और बात. फिल्म में सब कुछ बुरा नहीं. इसके गाने अच्छे हैं. पर वो तो टीवी और यू ट्यूब पर भी देखे जा सकते हैं. बाकी फिल्म स्टाइलिश है. रणबीर के कपड़े, अर्जुन की टीशर्ट. जैकलिन के टैटू और असेसरीज. टाइपराइटर. कार. बाइक. अगर ये सब देखने के लिए आप ढाई घंटे सनीमाघर में शवासन कर सकते हैं. तो जाइए जनाब. रॉय आपका इंतजार कर रही है.
अगर आप मुझ औसत भारतीय की तरह कहानी, एक्टिंग या मनोरंजन के लिए फिल्म देखते हैं. तो मेरी राय में रॉय मत देखिए. मम्मी कसम, कल्याण होगा.

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