फिल्म समीक्षा : मिस्टर एक्स

स्टार: डेढ़ स्टार
विक्रम भट्ट निर्देशित इमरान हाशमी की 'मिस्टर एक्स' 3डी फिल्म है। साथ ही एक नयापन है कि फिल्म का नायक अदृश्य हो जाता है। यह नायक अदृश्य होने पर भी अपनी प्रेमिका को चूमने से बाज नहीं आता, क्योंकि पर्दे पर इमरान हाशमी हैं। इमरान हाशमी की कोई फिल्म बगैर चुंबनों के समाप्त नहीं होती। विक्रम भट्ट 3डी तकनीक में दक्ष हैं। वे अपनी फिल्में 3डी कैमरे से शूट भी करते हैं, लेकिन इस तकनीकी कुशलता के बावजूद उनकी 'मिस्टर एक्स' में कथ्य और निर्वाह की कोई नवीनता नहीं दिखती। फिल्म पुराने ढर्रे पर चलती है।

रघु और सिया एटीडी में काम करते हैं। दोनों अपने विभाग के कर्मठ अधिकारी हैं। एक-दूसरे से प्रेम कर रहे रघु और सिया शादी करने की छट्टी ले चुके हैं। उन्हें बुलाकर एक खास असाइनमेंट दिया जाता है। कर्तव्यनिष्ठ रघु और सिया पीछे नहीं हटते। वे इस असाइनमेंट में एक कुचक्र के शिकार होते हैं। स्थितियां ऐसी बनती हैं कि दोनों एक-दूसरे के खिलाफ हो जाते हैं। अदृश्य हो सकने वाला नायक अब बदले पर उतारू होता है।

वह स्पष्ट है कि कानून उसकी कोई मदद नहीं कर सकता, इसलिए कानून तोडऩे में उसे कोई दिक्कत नहीं होती। बदले की इस भिड़ंत के बीच कुछ नहाने के दृश्य हैं, जहां अदृश्य नायक अपनी नायिका को चूमता है। इस मद में अच्छी रकम खर्च हुई होगी। महंगे चुंबन हैं 'मिस्टर एक्स' में। भट्ट कैंप की फिल्म है तो जब-तब गाने भी सुनाई पड़ते हैं। दर्शक अनुमान लगा सकते हैं कि कब गना शुरू हो जाएगा।

दर्शक इस फिल्म की पूरी कहानी का अनुमान लगा सकते हैं। सब कुछ प्रेडिक्टेबल और सरल है। महेश भट्ट और विशेष फिल्म्स की फिल्मों का एक पैटर्न बन चुका है। कभी कढ़ाई सुघड़ हो जाती है तो दर्शक फिल्म पसंद कर लेते हैं। 'मिस्टर एक्स' से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। इमरान हाशमी का जादू बेअसर हो चुका है।
फिल्म में उनका किरदार ढंग से लिखा भी नहीं गया है। सिया की भूमिका में अमायरा दस्तूर कमजोर हैं,जबकि उन्हें कुछ अच्छे दृश्य मिले हैं। अरूणोदय सिंह अपनी मौजूदगी से प्रभावित नहीं काते। उन्हें अभी तक अभ्यास की जरूरत है। तिवारी की छोटी भूमिका में आया कलाकार अपनी बेवकूफियों में अच्छा लगता है।

भट्ट कैंप की फिल्मों का संगीत कर्णप्रिय होने की वजह से लोकप्रिय होता है। इस बार वह मधुरता नहीं है। पॉपुला सिंगर अंकित तिवारी भी निराश करते हैं। वे एक ही तरीके से गाने लगे हैं या उनसे वैसी ही मांग की जाती है? दोनों ही स्थितियों में उन्हें सोचना चाहिए।

और हां, इस फिल्म में हर किरदार भारद्वाज को भरद्वाज क्यों बुलाता है? उ'चारण की और भी गलतियां हैं। फिल्म में भट्ट साहब ने शीर्षक गीत में आवाज दी है। बेहतर होगा कि वे ऐसे चमत्कारिक दबावों से बचें। कृष्ण, गीता और रघु व सिया के प्रतीकात्मक नाम...सब फिजूल रहा।
अवधि- 132 मिनट

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