दरअसल : जब सेलेब्रिटी पूछते हैं सवाल



-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले दिनों ट्विटर पर एक मित्र ने टिप्पणी की। उनकी टिप्पणी का आशय था कि फिल्मों के पत्रकार किसी सेलेब्रिटी की तरह सवाल नहीं पूछते। सेलेब्रिटी चैट शो में जब एक सेलेब्रिटी दूसरे सेलेब्रिटी से बात करता है तो उनके सवाल-जवाब बेहद अंतरंग और निजी होते हें। जानी-अनजानी बातें सुनाई पड़ती हैं। ऐसा लगता है कि सितारे अपने जिंदगी के रहस्‍य खोल रहे हों। मित्र ने यह टिप्‍पणी द अनुपम खेर शो-कुछ भी हो सकता है देख कर की थी। भारतीय टीवी पर फिल्‍म सेलेब्रिटी के चैट शो बहुत पॉपुलर होते हैं। साल-दो साल में कोई नया सेलेब्रिटी एंकर ऐसे शो लेकर आता है। पिछले कुछ सालों में कॉफी दि करण को सर्वाधिक लोकप्रियता मिली है।
से‍लेब्रिटी चैट शो के इतिहास से वाकिफ लोगों को मालूम है कि दमरदर्शन के जमाने में तबस्‍सुम फूल खिले हैं गुलशन गुलशन शो लेकर आती थीं। इस शो में हिंदी फिल्‍मों की पॉपुलर हस्तियों से तबस्‍सुम बातें करती थीं और उन्‍हें अपनी खास मुस्‍कराहट के साथ पेश करती थीं। सैटेलाइट टीवी के अस्तित्‍व और प्रसार में आने के बाद मुस्‍कराहट कम हुई और हर शो होस्‍ट के मिजाज के हिसाब से भावुकता,छींटाकशी और चुहलबाजी बढ़ गई। करण जौहर के शो की निहित मसखरी और संबंधों की उघड़ती परतों ने दर्शकों को आकृष्‍ट किया। समकालीन सिनेमा के लोकप्रिय निर्देशक ने अपनी पहुंच,संबंध और अर्जित छवि का सुंदर इस्‍तेमाल किया। उन्‍होंने मेहमानों से अंतरंग और चुटीले सवाल पूछे। मेहमानों ने भी बगैर आहत हुए उन सावालों के जवाब दिए।
    दो चीजें साथ-साथ हुईं। करण जौहर और दूसरे सेलेब्रिटी होस्‍ट की फिल्‍म बिरादरी से नजदीकी का सबसे बड़ा लाभ हुआ। उन्‍होंने अपनी बिरादरी के सभी चर्चित सितारों को ही बुलाया। माहौल यह रखा गया मानो आफ्टर पार्टी गुपचुप बातें चल रही हो...परनिंदा का माहौल हो। पूरी बातचीत में मेजबान और मेहमानों के बॉडी लैंग्‍वेज से उनकी अंतरंगता जाहिर होती है। ऐसी अंतरंगता और अनौपचारिकता पत्रकारों से बातचीत के समय नहीं होती। नकली और कृत्रिम माहौल होता है। ओढ़ी अंतरंगता रहती है। पत्रकारों की मजबूरी रहती है कि वे ज्‍यादातर मीठे सवाल पूछें। किसी सवाल से यह भनक न लगे कि वे कुछ खास जानना चाह रहे हैं। अगर कभी किसी पत्रकार ने हिमाकत भी कर दी तो फिल्‍म सेलेब्रिटी जवाब में सवाल को ही दरकिनार कर देती है। अव्‍वल तो पत्रकारों को ऐसे मौके ही नहीं मिलते कि उनके पास रिसर्च की पूरी टीम हो। सच कहें तो हमें अपनी मशरूफियत में इतना समय भी नहीं मिलता कि खास मेहमानों के लिए खास सवाल तैयार करें।
पत्रकारों से बातचीत के लिए बमुश्किल 20 मिनट का समय निकाला जाता है। उस 20 मिनट में भी सख्‍त हिदायत रहती है कि केवल संबंधित फिल्‍म पर ही बात करें। सेलिब्रिटी चैट के लिए तीन से पांच घंअे का समय निकाला जाता है। वे एकदूसरे को ऑब्‍लाइज भी कर रहे होते हैं। इन दिनों तो फिल्‍म सितारों के मैनेजर और पीआर भी बातचीत में बैठते हैं। मालूम नहीं उनकी खामोश मौाजूदगी की क्‍या वजह होती है। जरूरी है तो अमिताभ बच्‍चन की तरह अपना वॉयस रिकॉर्डर रखें। मैाने महसूस किया है कि किसी तीसरे की मौजूदगी में ढंग से बातचीत नहीं होती। हर इंटरव्‍यू एक प्रेमालाप है,जो दो व्‍यक्तियों के बीच हो तो रस बना रहता है। मैं हमेशा कहता हूं कि अच्‍छा इंटरव्‍यू परस्‍पर सम्‍मान और बराबरी के बाद ही संभव है। सर्वथा अपरिचित या कुछ परिचित व्‍यक्तियों के इंटरव्‍यू बेहतर होते हैं। बातचीत में तभी मजा आता है,जब पर्देदारी न हो। अनेक फिल्‍म सेलेब्रिटी पॉलिटिकली करेक्‍ट होने के चक्‍कर में सच और संवेदना से दूर हो जाते हैं। इन दिनों तो केवल फिल्‍मों की रिलीज के समय ही फिल्‍म स्‍टार मिलना पसंद करते हैं। फिल्‍मों के प्रचार के लिए उनकी टर्राहट जारी रहती है।
      इन दिनों इंटरव्‍यू और बातचीत नीरस और बेस्‍वाद हो गए हैं। अखबारों में इतना स्‍पेस नहीं रहता कि कि लंबे और बेबाक इंटरव्‍यू छापे जा सकें। और फिर कई बार समझदारी के फर्क से भी संपादन और प्रस्‍तुति में अर्थ का अनर्थ हो जाता है।  

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