फिल्‍म समीक्षा : जुगनी


प्रेमसंगीत
-अजय ब्रह्मात्‍मज
शेफाली भूषण की फिल्‍म जुगनी में बीबी सरूप को देखते हुए लखनऊ की जरीना बेगम की याद आ गई। कुछ महीनों पहले हुई मुलाकात में उनकी म्‍यूजिकल तरक्‍की और खस्‍ताहाल से एक साथ वाकिफ हुआ था। फिल्‍म में विभावरी के लौटते समय वह जिस कातर भाव से पैसे मांगती है,वह द्रवित और उद्वेलित करता है। पारंपरिक संगीत के धनी साधकों के प्रति समाज के तौर पर हमारा रवैया बहुत ही निराशाजनक है। मां के हाल से वाकिफ मस्‍ताना ने जुगनी के साथ किडनी का तुक मिलाना सीख लिया है। आजीविका के लिए बदलते मिजाज के श्रोताओं से तालमेल बिठाना जरूरी है। फिर भी मस्‍ताना का मन ठेठ लोकगीतों में लगता है। मौका मिलते ही वह अपनी गायकी और धुनों से विभावरी को मोहित करता है। मस्‍ताना की निश्‍छलता और जीवन जीने की उत्‍कट लालसा से भी विभावरी सम्‍मोहित होती है।
जुगनी के एक कहानी तो यह है कि विभावरी मुंबई में फिल्‍म संगीतकार बनना चाहती है। उसे एक फिल्‍म मिली है,जिसके लिए मूल और देसी संगीत की तलाश में वह पंजाब के गांव जाती है। वहीं बीबी सरूप से मिलने की कोशिश में उसकी मुलाकात पहले उनके बेटे मस्‍ताना से हो जाती है। यह ऊपरी कहानी है।  गहरे उतरें तो सतह के नीचे अनेक कहानियां तैरती दिखती हैं। विभावरी के लिविंग रिलेशन और काम के द्वंद्व,बीबी सरूप की बेचारगी,मस्‍ताना और प्रीतो का प्रेम,मस्‍ताना के दादा जी की खामोश मौजूदगी,मस्‍ताना के दोस्‍त की इवेंट एक्टिविटी,मस्‍ताना और विभावरी की संग बीती रात,विभावरी का पंजाब जाना और मस्‍ताना का मुंबई आना...हर कहानी को अलग फिल्‍म का विस्‍तार दिया जा सकता है। मस्‍ताना भी विभावरी के प्रति आकर्षित है। उसका आकर्षण देह और प्रेम से अधिक भविष्‍य की संभावनाओं को लेकर है। रात साथ बिताने के बाद विभावरी और मस्‍ताना की भिन्‍न प्रतिक्रियाएं दो मूल्‍यों और वर्जनाओं को आमने-सामने ला देती हैं। दोनों उस रात को अपने साथ लिए चलते हैं,लेकिन अलग अहसास के साथ।
शेफाली भूषण ने शहरी लड़की और गंवई लड़के की इस सांगीतिक प्रेमकहानी में देसी खुश्‍बू और शहरी आरजू का अद्भुत मेल किया है। दोनों शुद्ध हैं,लेकिन उनके अर्थ और आयाम अलग हैं। फिल्‍म किसी एक के पक्ष में नहीं जाती। देखें तो विभावरी और मस्‍ताना दोनों कलाकार अपन स्थितियों में मिसफिट और बेचैन हैं। संगत में दोनों को रुहानी सुकून मिलता है। उसे प्रेम,यौनाकर्षण या दोस्‍ती जैसे परिभाषित संबंधों और भावों में नहीं समेटा जा सकता है।
फिल्‍म की खोज क्लिंटन सेरेजो और सिद्धांत बहल हैं। एक के सहज संगीत और दूसरे के स्‍वाभाविक अभिनय का प्रभाव देर तक रहता है। क्लिंटन सेरेजो का संगीत इस फिल्‍म की थीम के मेल में है। उन्‍होंने परंपरा का पूरा खयाल रखा है। फिल्‍म की खासियत इसकी गायकी भी है,जिसे विशाल भारद्वाज,ए आर रहमान और स्‍वयं क्लिंटन की आवाजें मिली हैं। सिंद्धांत बहल के अभिनय में सादगी है। सुगंधा गर्ग और अनुरीता झा अपनी भूमिकाओं में सशक्‍त हैं। सुगंधा ने विभावरी के इमोशन की अभिव्‍यक्ति में कोताही नहीं की है। अनुरीता झा ने प्रीतो की अकुलाहट और समर्पण को सुदर तरीके से पेश किया है। बीबी सरूप की संक्षिप्‍त लेकिन दमदार भूमिका में साधना सिंह की मौजूदगी महसूस होती है।
अवधि- 105 मिनट
स्‍टार- साढ़े तीन स्‍टार
  

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