फिल्‍म समीक्षा : जय गंगाजल




देसी मिजाज और भाषा

-अजय ब्रह्मात्‍मज
हिदी सिनेमा के फिल्‍मकार अभी ऐसी चुनौतियों के दौर में फिल्‍में बना रहे हैं कि उन्‍हें अब काल्‍पनिक कहानियों में भी शहरों और किरदारों के नामों की कल्‍पना करनी पड़ेगी। यह सावधानी बरतनी होगी कि निगेटिव छवि के किरदार और शहरों के नाम किसी वास्‍तविक नाम से ना मिलते हों। जय गंगाजल में बांकीपुर को लेकर विवाद रहा कि इस नाम का बिहार में विधान सभा क्षेत्र है। चूंकि फिल्‍म के विधायक बांकीपुर के हैं,इसलिए दर्शकों में संदेश जाएगा कि वहां के वर्त्‍तमान विधायक भी भ्रष्‍ट हैं। कल को फिल्‍म के किरदार भोलानाथ सिंह यानी बीएन सिंह नाम का कोई पुलिस अधिकारी भी आपत्ति जता सकता है कि इस फिल्‍म से मेरी बदनामी होगी। भविष्‍य अब खल और निगेटिव किरदारों के नाम दूधिया कुमार और बर्तन सिंह होंगे। शहरों के नाम भागलगढ़ और पतलूनपुर होंगे। ताकि कोई विवाद न हो। बहरहाल,प्रकाश झा की जय गंगाजल मघ्‍य प्रांत के एक क्षेत्र की कहानी है,जहां आईपीएस अधिकारी आभा माथुर की नियुक्ति होती है। मुख्‍यमंत्री की पसंद से उन्‍हें वहां भेजा जाता है।
आभा माथुर को मालूम है कि उनके क्षेत्र में सब कुछ ठीक नहीं है। वह आते ही घोषणा करती है, मैं यहां टेबल कुर्सी पर बैठ कर सलामी ठोकवाने नहीं आई हूं।वह आगे कहती है,आज समाज में उसकी इज्‍जत होती है,जो कानून तोड़ता है,लेकिन मैं उसकी इज्‍जत करती हूं जो कानून तोड़ने वाले को तोड़ता है। सच्‍चे इरादों की हिम्‍मती आभा सब कुछ साफ बता देती है। वह अपने सर्किल बाबू को बताती है कि कीचड़ धोने के लिए साफ पानी की जरूरत होती है। गंदे पानी की नहीं। आभा माथुर को भोलानाथ सिंह जैसे चालू सर्किल बाबू के साथ काम करना है,जो हर हाल में अपना काम निकालना जानते हैं और सब कुठ ठीक कर देते हैं। वे कहते हैं,हम तो नौकरी में आते ही समझ गए थे कि मस्‍ती से जीना है तो कभी अपना इमेज बनने ही ना दो। बड़ा मुश्किल होता है जीना। भोलानाथ सिंह के भ्रष्‍टाचार से ऐसी दुर्गंध आती है कि वे इलायची बांट कर दूसरों की सोच और स्‍वाभिमान में सुगंध लाने की बातें करते रहते हैं।
जय गंगाजल प्रकाश झा की परिचित शैली और सिनेमाई भाषा की सामाजिक-राजनीतिक फिल्‍म है,जिसका प्रस्‍थान आधार उनकी ही फिल्‍म गंगाजल है। गंगाजल अपराध से त्रस्‍त एक ऐसे समाज और पुलिस अधिकारी की कहानी थी,जो भीड़ के न्‍याय की दुविधा से ग्रस्‍त था। आभा माथुर भीड़ के न्‍याय का विरोध करती है। वह कानून के दायरे में ही भ्रष्‍ट राजनीतिज्ञों को सजा दिलाने में यकीन रखती है। कर्तव्‍य निर्वाह में वह अपने कथित संरक्षक की चेतावनी को भी अनसुना कर देती है। स्थिति ऐसी आती है कि उसे अकेला जूझना होता है। फिर भी वह हिम्‍मत नहीं हारती। वह अपनी निष्‍ठा और ईमानदारी से भोलेनाथ जैसे भ्रष्‍ट सर्किल बाबू का भी हृदय परिवर्तन कर देती है। समाज का समर्थन हासिल करती है।
जय गंगाजल आभा माथुर की ईमानदारी व निष्‍ठा तथा भोलेनाथ के भ्रष्‍ट आचरणों के द्वंद्व को लेकर चलनती है। इसमें बबलू और डब्‍लू पांडे जैसे बाहुबली नेता भी हैं,जिनका दावा है कि इस बांकीपुर में दाएं-बाएं,ऊपर-नीचे सब हमारे इशारे पर होता है। चार बार से विधायक चुने जा रहे बबलू पांडे को लगता है कि वे ही आजीवन विधायक चुने जाते रहेंगे। आभा माथुर उनके दंभ और भ्रम को तोड़ती है। उनके सहायक रहे भालेनाथ भी बदलते हैं और पश्‍चाताप की भावना से नेक राह अपना लेते हैं। यह फिल्‍म आभा माथुर से अधिक भोलेनाथ की कहानी हो जाती है,क्‍योंकि उस किरदार में परिस्थिति के साथ परिवर्तन आता है। वह कहानी के केंद्र में बना रहता है।
-जय गंगाजल में प्रकाश झा ने पहली बार किसी मुख्‍य किरदार की भूमिका निभायी है। उन्‍होंने किरदार में ढलने और उसे रोचक बनाए रखने की भरपूर कोशिश की है। फिर भी कुछ दृश्‍यों में कैमरे के सामने उनका संकोच जाहिर होता है। अनुभवी निर्देशक कैमरे के सामने आने पर अभिनेताओं की चुनौतियों और सीमाओं से वाकिफ होने की वजह से असहज हो सकता है। प्रकाश झा संयत और सहज रहने का सफल यत्‍न करते हैं। आभा माथुर के किरदार में प्रियंका चोपड़ा ने जोशीला अभिनय किया है। वह इस भूमिका में हमेशा तत्‍पर और त्‍वरित दिखती हैं। उन्‍हें जोरदार संवाद मिले हैं,जिन्‍हें वह बखूबी अदा करती हैं। वर्दी में उनकी चपलता देखते ही बनती है। उनके एक्‍शन दृश्‍यों में कोई डर या झिझक नहीं है। मानव कौल के रूप में हिंदी फिल्‍मों को एक ऐसा खल अभिनेता मिला है,जो चिल्‍लाता और भयानक चेहरा नहीं बनाता। उसकी करतूतें नहीं मालूम हों तो वह नेकदिल और सभ्‍य लग सकता है। इस फिल्‍म में निाद कामथ और मुरली शर्मा ने दी भूमिकाओं को अच्‍छी तरह निभया है। अन्‍य कलाकारों में राहुल भट्ट,वेगा टमोटिया,शक्ति सिन्‍हा,प्रणय नारायण आदि उल्‍लेखनीय हैं।
प्रकाश झा की जय गंगाजल देसी मिजाज की सामाजिक फिल्‍म है। लंबे समय के बाद फिल्‍म के प्रमुख किरदारों के संवाद याद रह जाते हैं। यह फिल्‍म मुद्दों से अधिक व्‍यक्तियों की भिड़ंत को लेकर चलती है।
अवधि- 148 मिनट
स्‍टार- ***1/2 साढ़े तीन स्‍टार

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