मुझे हारने का शौक नहीं : आलिया भट्ट

विस्‍तृत बातचीत की कड़ी में इस बार हैं आलिया भट्ट। आलिया ने यहां खुलकर बातें की हैं। आलिया के बारे में गलत धारणा है कि वह मूर्ख और भोली है। आलिया अपनी उम्र से अधिक समझदार और तेज-तर्रार है। छोटी उम्र में बड़ी सफलता और उससे मिले एक्‍सपोजर ने उसे सावधान कर दिया है।



23 की उम्र आमतौर पर खेल-कूद की मानी जाती है। मगर उस आयु की आलिया भट्ट अपने काम से वह मिथक ध्‍वस्‍त कर रही हैं। वह भी लगातार। नवीनतम उदाहरण ‘उड़ता पंजाब’ का है। ‘शानदार’ की असफलता को उन्होंने मीलों पीछे छोड़ दिया है। उनके द्वारा फिल्म में निभाई गई बिहारिन मजदूर की भूमिका को लेकर उनकी चौतरफा सराहना हो रही है। देखा जाए तो उन्होंने आरंभ से ही फिल्‍मों के चुनाव में विविधता रखी है। वे ऐसा सोची-समझी रणनीति के तहत कर रही हैं।

     आलिया कहती हैं, ‘मैं खेलने-कूदने की उम्र बहुत पीछे छोड़ चुकी हूं। मैं इरादतन कमर्शियल व ऑफबीट फिल्मों के बीच संतुलन साध रही हूं। इस वक्त मेरा पूरा ध्‍यान अपनी झोली उपलब्धियों से भरने पर है। हालांकि मैं किसी फिल्म को इतना गंभीर तरीके से नहीं लेती हूं कि मरने और जीने का मामला हो जाएं। कई बार एक्टर स्क्रीन पर अपने आप को इतना गंभीर लेने लगता है कि उसकी की भी झलक देखने को मिलती है। मैं किरदार में घुस जाती हूं। उसके बाद किरदार में बन जाने का अपना मजा आता है। जब मैंने ‘उड़ता पंजाब’ साइन की थी, तब मुझे पता था कि यहां पर परफॉरमेंस का काफी स्कोप है। अगर मैं उसे ठीक तरीके से ना करूं तो मेरे लिए बुरा होगा। मैं बहुत घबराई हुई थी। इस किरदार में काफी मुश्किलें थी। कुछ भी हो सकता था, पर मेरे लिए सब कुछ सकारात्मक रहा। मेरे लिए खुशी एकतरफ है। 

     खुद ही हदें पार करने की सोच मेरी परवरिश का नतीजा है। मेरे परिवार में मां हैं। पापा हैं। पूजा है। हर कोई अपने आप के साथ मुकाबला करता है। मैं भी अपने आप से ही मुकाबला करती हूं। मैं यह नहीं कह रही कि तोल-मोल कर काम कर रही हूं, पर अपने आप को चैलेंज करने के लिए हदें तोड़ने के लिए मैं काम करती हूं।अगर किसी ने मुझे कुछ कहा और मैंने कहा कि नहीं कर सकती।तब मैं सोचूंगी कि आखिर मैंने ना क्यों कहा। अब तो मुझे करना ही पड़ेगा। यह पाना हाई या थ्रिल है। यह डर वाली बात मुझे पापा से मिली है। पापा इतने बोल्ड हैं। वे कहा करते हैं कि अगर कोशिश नहीं करोंगे तो जीत कैसे मिलेगी। वैसे तो मैं बहुत स्पर्धावादी हूं। मुझे हारने का शौक नहीं है। जैसे शानदार को लेकर मुझे हार महसूस हुई। तब मुझे लगा कि मेरे साथ ऐसा नहीं हो सकता। तब पापा ने मुझसे एक बात कही थी। उन्होंने कहा कि द बेस्ट रिवेंज इज़ मैसिव सक्सेस। मैंने उसे अपने कमरे की दीवार पर लगा दिया था। मुझे पता था। उसके बाद मुझे बढ़त जरूर मिलेगा। मैं कोशिश करना नहीं छोड़ सकती। मुझे डरना नहीं है। डर से काम नहीं होता है।
     लोगों को ‘स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर’ में अलग आलिया दिखी थी। हाइवे में लगा कि थोड़ा बदलाव हुआ है। पर अभी भी किरदार में बनने में आलिया को थोड़ा वक्त लगेगा। इसमें भी निर्देशक के पास थोड़ा सा समय नहीं रहता है। हुआ क्या कि ‘उड़ता पंजाब’ के किरदार में उसके बैठने चलने थोड़ी सी कमी दिखी। जो आगे ठीक होगा। यह जो कमी है इसे आलिया की ईमानदार कोशिश ने ढक दिया। कई बार आप फेल हो जाते हो फिर भी माता-पिता नहीं डाटते हैं, क्योंकि आपकी कोशिश सही होती है। इस पर आलिया अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करती हैं, ‘हर किरदार में कुछ ना कुछ कमी रहेगी। यह मेरा मानना है कि यह होना भी चाहिए। अगर पऱफेक्ट काम हुआ तो उसमें बढ़त का स्कोप नहीं होगा। वह थोड़ा सा इन ह्यूमन भी लगता है। जब भी आप कोई परफेक्ट काम देखेंगे तो आप का इमोशनल कनेक्ट नहीं होगा, क्योंकि वह किताब की तरह सही है। एक थोड़ा सा ढिलमिल रहना चाहिए। मेरे पापा मुझ से कहते हैं कि एक एक्टर में वल्नरबिलिटी रहनी चाहिए। जो नए लोगों में होती है। इस वजह से वह स्क्रीन पर ताजा दिखते हैं। दस फिल्म के बाद भले ही वह बदल जाता है। सच कहूं तो मैं यह कभी नहीं खोना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि हर फिल्म में मुझे दस गलतियां दिखें। जिसे मैं तभी नहीं बदलूंगी, बल्कि आगे के किरदारों में बदल सकती हूं। पापा और पूजा दोनों बहुत स्मार्ट हैं मेरे लिए। रहा सवाल मां का तो हम तीनों में कुछ बातें समान हैं। वे हैं आजादखयाली, आत्मगौरव और लडऩे की क्षमता। पूजा और मैं फेमिनिस्ट हैं। हमारे लिए औरत होना ग्रेटेस्ट बात है। हम दोनों इसमें यकीन करते हैं। हमें कोई डोर मैट नहीं बना सकता। पूजा बहुत सपोर्टिव हैं।

     मेरे लिए फिल्म जगत में करियर बनाना एक स्‍वर्गिक अनुभव रहा। मैं ढेर सारी जिंदगी जी रही हूं। विभिन्न तबके से आई लड़कियों के सुख-दुख को महसूस कर पा रही हूं। मिसाल के तौर पर इसी फिल्म में एक सीन था , जब पहली बार वह लोग उसे उठा कर लेकर जाते हैं वह स्केप करने की कोशिश करती है। पहली बार सब उन्हें थोड़ा सा रेप वाला सीन हो जाता है। वह उसे इंजेक्ट करते हैं। तब मैंने अभिषेक से पूछा था कि मेरी आत्मा का उद्देश्य इस सीन में क्या है, क्योंकि यह इतना भयानक सीन है। एक लड़की के लिए इस हालात में होना भयानक है। उन्होंने कहा कि एक बस एक निराशा के साथ आप को स्केप होना है। एक और सीन था, जिसमें वह छत की तरफ भागती हुई जाती है इस सोच से कि वह गुद जाएगी। मैं बहुत असहज थी उस हालात को लेकर। मैंने एक जानवर की तरह रिएक्ट किया। हमने पूरे दिन उसकी शूटिंग की। अंत में मुझे याद है कि पैकअप के बाद एक घंटे मेरे हाथ कांप रहे थे। उस सीन में मुझे मजा आया। इसमें आशाहीन होकर करने की पूरी कोशिश थी।

     ठीक इसी तरह ‘हाईवे’ के दौरान इम्तियाज अली से मिले अनुभव ने मुझे सींचा। मैं उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकती। हर अगला सीन पिछले सीन से अधिक इंटरेस्टिंग रहता था। उसमें एक्टिंग नहीं करनी पड़ी थी। खुद के अतीत को जिया था। इम्तियाज के सीन रियल होते हैं। उस फिल्म को करते हुए लग रहा है कि मैं ही वीरा ही हूं। मुझे सबसे ज्यादा इमोशन पर ध्यान देना था। सच कहूं तो ऐसी फिल्म का मुझे कभी खयाल ही नहीं आया था। मैंने केवल भाषा और अन्य सामान्य चीजों की तैयारी की थी। बाकी सेट पर मैं खाली स्लेट की तरह गई थी। मैंने एक्टिंग की खास ट्रेनिंग नहीं ली थी। पहली फिल्म में करण से ट्रेनिंग मिली और इसमें इम्तियाज सर से मिल रही है। मेरी ट्रेनिंग आगे बढ़ गई है। मैं सेट पर ही खुद को तैयार करती हूं। भूल होती है तो डायरेक्टर सुधार देते हैं। मैं क्ले हूं और डायरेक्टर आर्टिस्ट हैं। वे मुझे जिस रूप में बदल दें। मैं तैयारी में ज्यादा यकीन नहीं करती।मैं कहीं भी सो सकती हूं। कहीं भी लेट सकती हूं। मुझे कुछ भी गंदा नहीं लग रहा। बाल खराब हो जाएंगे। कपड़े मैले हो जाएंगे। इन बातों की फिक्र ही नहीं है। मैं हूं ही ऐसी।

     मैं सफलता को सिर न चढऩे भी नीं देती। हालांकि ग्लैमर जगत में काम करने वालों के लिए अहंकारी बनने के आसार ज्यादा रहते हैं। वजह प्रशंसकों से मिलने वाला बेशुमार प्यार। उनसे मिलने वाली तारीफ आप का दिमाग खराब कर सकती है। लिहाजा मैं खुद को स्टार की तरह नहीं देखती हूं। मैं यहां अपना काम कर रही हूं। कोई मुझ पर एहसान नहीं कर रहा है। साथ ही मैं एक्टिंग कर किसी पर एहसान नहीं कर रही हूं। मैं सिर्फ एक सम्मान चाहती हूं। कम समय में स्टारडम से उत्साहित होना गलत है। मैं कभी अपनी असफलता को दिल में जगह नहीं दूंगी, क्योंकि मुझे पता है कि वह मुझे बदल सकता है। असफलता के साथ सफलता भी आप को नकारात्मक शक्ल दे सकती है। मैं उसी हिसाब से सोच कर काम करती हूं। स्टारडम कभी मुझ पर हावी नहीं होगा। कभी हुआ भी तो मेरे पिता मुझे संभाल लेंगे।

     पहले जब आप बच्चे होते हो तो टीवी में दिखते हो। मुझे नहीं पता था कि सिनेमा सिनेमा है। मुझे केवल गोविंदा और करिश्मा कपूर नजर आते थे। वह दोनों रास्तों और बाकी जगहों पर नाच रहे हैं। सिनेमा से जुड़ी पहली याद तो वही थी। उससे पहले कार्टून थे। मेरे लिए सिनेमा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री है। मैं केवल इसके बारे में बात करूंगी। हां। उसकी जो स्कोप है। जो लार्जर देन लाइफ अहसास है वह मुझे काम करने के बाद महसूस हुआ। मुझे पता चला कि क्या क्या हो सकता है। खासकर अभी। अभी मैं सिनेमा को लेकर ओपन हुई हूं। अब मैं हिंदी फिल्मों के अलावा हॅालीवुड की फिल्में भी देखती हूं। अब मैं पहले से ज्यादा हॅालीवुड, फ्रेंच और मराठी सिनेमा देख रही हूं। अभी मैंने ‘सैराट’ देखी। मुझे यह बहुत ज्यादा पसंद आयी। मैं बहुत सुरक्षित होकर कह सकती हूं कि सिनेमा मेरा पहला प्यार है।मेरे लिए सबसे कंफर्ट सिनेमा है। मैं महसूस करती हूं कि हमारी पीढ़ी के साथ चलते चलते सिनेमा और अधिक विकसित हो रहा है। पता नहीं भविष्य में क्या होगा।

     जब आप देखते हो कि सारी दुनिया आइडिया और परफॉर्म  के स्तर पर ऐसा काम कर रही है। हिंदी सिनेमा में आकर आप को अलग तरीके से सारी चीजें करनी प़ड़़ती है वह कितना संघर्षशील रहता है। इस सवाल के जवाब में आलिया कहती हैं, ‘आप कोई भी फिल्म जैसे गोलमाल या बजरंगी भाई जान कर रहे हो, उसे भी आप पूरी शिद्दत के साथ करोंगे। वह भी किरदार है। वह किरदार मुश्किल है। मैं नहीं मानती कि यह परफॉरमेंस का हिस्सा नहीं है। कॅामेडी मुझे सबसे ज्यादा कठिन लगता है। इंटेस कठिन है ही। पर कॅामेडी सबसे अधिक मुश्किल है। आप दूसरे लोगों से प्रभावित होने के लिए उन्हें देखते हैं। हम सोचते हैं कि यह इस तरह का काम कर रहे हैं तो शायद हमें भी मेहनत करनी पड़ेगी।अगर ऐसे डांस करें तो मुझे बेहतर करना है। एक मासूमियत है मेहनत है। किसी का एक्शन अच्छा लगा। मुझे लगता है कि जितना एक्सपोज करोगे। हालांकि आप की खुद की एक प्रेरणा होनी चाहिए।‘

     मुझे हिंदी फिल्मों की ढेर सारी चीजें रिझाती हैं। मेरे ख्याल से काम करने का तरीका हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का अच्छा लगता है। एक परिवार सा है। शायद हॅालीवुड या कहीं औऱ यह टेक्‍निकल है। वहां निर्देशक या एक्टर लोग साथ में बैठकर खाना नहीं खाते। साथ में बैठकर बात नहीं करते हैं। मैंने अपने परिवार में देखा है कि निर्माता अपना घऱ गिरवी रखकर फिल्म बनाते हैं। वह करो या मरो वाली स्थिति होती है। जिस पैशन और जिस प्यार के साथ हिंदी फिल्म बनती है वह कहीं और नहीं बन सकती है। यह मुझे सबसे खास लगता है। रहा सवाल कमी का तो यहां लेखकों की कमी है। स्क्रीनप्ले की कमी है। एक लॅाजिक की कमी है। बहुत होता है। यही सबसे आकर्षण वाली चीज है कि जब मुझे कोई कहता है कि आलिया तुम इतने अलग अलग किरदार कैसे निभा रही हो। मैं कहती हूं कि एक्टर को वही करना चाहिए ना। यह मुझे आकर्षित करता है कि लोग अलग अलग किरदार को नया समझते हैं। वह यह नहीं मानते कि एक्टर का काम एक ही पार्ट नहीं बल्कि नया नया पा

     मैं बचपन से शांत रही हूं। मैंने कभी शैतानी नहीं की। बचपन में कभी किसी को तंग नहीं किया। मुझे आम लड़कियों की तरह लिपस्टिक या पाउडर लगाने का शौक नहीं था। मां ही कभी कभार फेसपैक लगाने को बोलती थी। हफ्ते में एक बार बालों में तेल लगाती थी। कभी-कभी मॉम चुपके से भी तेल डाल देती थी। हालांकि छोटी होने के बावजूद मैं अपने पहनने-ओढऩे को लेकर बेहद सजग रहती थी। मैं खूब खेलती थी। मेरे परिजन भी कहा करते थे कि बचपन का पूरा लुत्फ ले लो। हां अभिनेत्री बनने के बाद खान-पान की आदतों पर अंकुश रख रही हूं।

     मेरी मॉम बहुत अंडरस्टैंडिंग रही हैं। उनकी खासियत है कि वे सामने वाले को बातचीत में बेहद सहज कर देती हैं। जिससे तालमेल बेहतर हो जाता है। मैंने उनसे यह चीज सीखी है। वे पूरे परिवार को साथ लेकर चलती हैं। वह परिवार में सभी की भावनाओं की कद्र करती है। दूसरी चीज कि वह बहुत अनुशासित हैं। हर शाम को टहलने जाती है। स्वीमिंग और योग करती है। खानपान का ध्यान रखती हैं। हर कोई कुछ पलों को इंज्‍वाय करना चाहता है। उसमें भी सहयोग करती हैं। उनकी जिंदगी बेहद संतुलित है। इसका श्रेय मेरे नाना-नानी को भी जाता है। दोनों बहुत अनुशासित और हेल्दी लाइफ जीते हैं। यही चीजें मैं उनसे सीख रही हूं। इसके अलावा उनकी समय पर आने की सीख का मैं हमेशा ध्यान रखती हूं। बाकी हमारा रिश्ता टिपिकल मॉम बेटी का ही है। मॉम बेवजह रोक-टोक नहीं करती। मैं मेरी बहन और मॉम तीनों साल में एक बार छुट्टियां मनाने विदेश जाते हैं। वहां हम दोस्तों की तरह खूब मस्ती करते हैं। मैं उनसे निजी और प्रोफेशनल हर प्रकार की बातें शेयर करती हूं। वे लिबरल मॉम हैं। वे सचेत भी करती रहती हैं। कहती रहेंगी कि अगर देर हो जाए मुझे सूचित कर दिया करो। ताकि किसी समस्या में फंसी तो वे वहां मदद के लिए पहुंच सकेंगी। यह भी कि रात में बारह बजे ऑटो से चलने की जरूरत नहीं। वे खुद लेने आ जाएंगी। खुद की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है। फ्रीडम के साथ जिम्मेदारी भी आती है। उन्होंने यह बात मुझे भली-भांति सिखाया है।


      



Comments

HindIndia said…
बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

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