दरअसल : खतरनाक है यह उदासी



-अजय ब्रह्मात्‍मज
मालूम नहीं करण जौहर की ऐ दिल है मुश्किल देश भर में किस प्रकार से रिलीज होगी? इन पंक्तियों के लिखे जाने तक असंमंजस बना हुआ है। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री देवेन्‍द्र फड़नवीस ने करण जौहर और उनके समर्थकों को आश्‍वासन दिया है कि किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं होने दी जाएगी। पिछले हफ्ते ही करण जौहर ने एक वीडियो जारी किया और बताया कि वे आहत हैं। वे आहत हैं कि उन्‍हें देशद्रोही और राष्‍ट्रविरोधी कहा जा रहा है। उन्‍होंने आश्‍वस्‍त किया कि वे पड़ोसी देश(पाकिस्‍तान) के कलाकारों के साथ काम नहीं करेंगे,लेकिन इसी वीडियो में उन्‍होंने कहा कि फिल्‍म की शूटिंग के दरम्‍यान दोनों देशों के संबंध अच्‍छे थे और दोस्‍ती की बात की जा रही थी।
यह तर्क करण जौहर के समर्थक भी दे रहे हैं। सच भी है कि देश के बंटवारे और आजादी के बाद से भारत-पाकस्तिान के संबंध नरम-गरम चलते रहे हैं। राजनीतिक और राजनयिक कारणों से संबंधों में उतार-चढ़ाव आता रहा है। परिणामस्‍वरूप फिल्‍मों का आदान-प्रदान प्रभावित होता रहा है। कभी दोनों देशों के दरवाजे बंद हो जाते हैं तो कभी अमन की आशा के गीत गाए जाते हैं। इस तथ्‍य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि समान इतिहास और साझा संस्‍कृति के कारण दोनों देशों में अनेक सांस्‍कृतिक समानताएं हैं। फिल्‍मों के मामले में आजादी के बाद से भारत का बाजार बढ़ा है। हिंदी फिल्‍में बहुत अच्‍छा कारोबार कर रही हैं। इस संदर्भ में पाकिस्‍तन की फिल्‍म इंडस्‍ट्री की कमर टूट चुकी है। सीमित बाजार के कारण फिल्‍मों की क्‍वालिटी और उनके निर्माण पर असर पड़ा है। वैध्‍-अवैध तरीके से हिंदी फिल्‍में पाकिस्‍तान में जाती रही हैं। वहां के दर्शक इन फिल्‍मों को देखते रहे हें। महेश भट्ट की पहल से पाकिस्‍तानी कलाकारों का भात आगमन आरंभ हुआ। वहां की प्रतिभाओं को यहां काम मिले। पाकिस्‍तान में भी लंबे अर्से के बाद हिंदी फिल्‍मों का प्रदर्शन आरंभ हुआ। धीरे-धीरे हिंदी की बड़ी फिल्‍में पाकिस्‍ताने से 10-15 करोड़ का व्‍यवसाया करने लगीं। साथ ही वहां के कलाकारों को भारत की फिल्‍मों में काम मिलने लगा। ताजा विवाद के बावजूद इसमें कोई शक नहीं है कि फवाद खान हिंदी फिल्‍मों के दर्शकों के बीच अत्‍यंत लोकप्रिय हैं।
कला और संस्‍कृति के मामले में संकीर्ण नजरिए से काम नहीं चल सकता। हम पाकिस्‍तानी शायरो,साहित्‍यकारों,गायको,कव्‍वालों और कलाकारों के फन का मजा लेते रहे हैं। इसी प्रकार भारतीय कलाकार पाकिस्‍तान में लोकप्रिय हैं। तुलना की जाए तो भारत का पासंग बड़ा हुआ ही मिलेगा। कई मित्र सवाल करते हैं कि भारत में जिस प्रकार से पाकिस्‍तानी कलाकरों को धन और सम्‍मनान दिया जाता है,वैसा ही धन या मान-सम्‍मान पाकिस्‍तान में भारतीय कलाकारों को नहीं मिलता। यह सच है,लेकिन हमें इस सच्‍चाई की जड़ में जाना चाहिए। गौर करने पर पाएंगे कि पाकिस्‍तान का मनोरंजन बाजार व प्रभाव छोटा है। लता मंगेशकर जैसी नामचीन कलाकार को बुलाकर वे प्रभावशाली कार्यक्रम नहीं कर सकते। ऐसे कार्यक्रम की लागत ही भारी पड़ेगी। संगीत और फिल्‍मों का भारतीय बाजार बड़ा है। फिर भी भारतीय कलाकारों के छोटे-मोटे कार्यक्रम पाकिस्‍तान में होते रहते हैं। पता ही होगा कि ताजा प्रसंग में राजू उपाध्‍याय ने अपनी यात्रा रद्द की। अनेक भारतीय कलाकारों ने पाकिस्‍तान की निजी और आधिकारिक यात्राएं की हैं और सभी खुश व संतुष्‍ट होकर लौटे हैं।
ऐ दिल है मुश्किल में फवाद खान की मौजूदगी को लेकर महाराष्‍ट्र की एक राजनीतिक पार्टी ने फतवा दिया कि वे इस फिल्‍म को रिलीज नहीं होने देंगे। अभी माहौल कुछ ऐसा है कि उग्र राष्‍ट्रवाद की हवा में ज्‍यादातर को लग रहा है कि पाकिस्‍तानी कलाकारों को निकालने या काम न देने से हम पाकिस्‍तान को जवाब दे रहे हैं या सबक सिख रहे हैं। दरअसल,ऐसा कर हम आतंकवादियों के इरादों को पानी दे रहे हें। वे यही चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच दुश्‍मनी का माहौल बना रहे। होना तो यह चाहिए था कि ऐसे फतवों का हर स्‍तर पर विरोध होता। आम दर्शक और सरकारें इसका संज्ञान लेतीं। ऐसी ताकतों को चेतावनी देतीं कि उन्‍हें कानूनव्‍यवस्‍था भंग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। जनता और सरकार की उदासी इस बार खतरनाक रही। उम्‍मीद है कि आगे इसका दोहराव नहीं होगा।





















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आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-10-2016) के चर्चा मंच "ये माटी के दीप" {चर्चा अंक- 2509} पर भी होगी!
दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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