दरअसल : सितारों के बच्‍चे



दरअसल...
सितारों के बच्‍चे
-अजय ब्रह्मात्‍मज
हम यह मान कर चलते हैं कि फिल्‍म इंडस्‍ट्री में सितारों और अन्‍य सेलिब्रिटी के बच्‍चे बड़ चैन व आराम से रहते होंगे। सुख-सुविधाओं के बीच पल रहे उनके बच्‍चों को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होगी। जरूरत की सारी चीजें उन्‍हें मिल जाती होंगी और उनकी ख्‍वाहिशें हमेशा पूरी होती होंगी। ऐसा है भी और नहीं भी है। मां-बाप की लोकप्रियता की वजह से इन बच्‍चों की परवरिश समान आर्थिक समूह के बच्‍चों से अलग हो जाती है। बचपन से ही उन्‍हें यह एहसास हो जाता है कि उनके मां-बाप कुछ खास हैं। सोशल मीडिया और मीडिया के कारण छोटी उम्र में ही उन्‍हें पता चल जाता है कि वे अपने सहपाठियों और स्‍कूल के दोस्‍तों से अलग हैं। ऐसे बचपन के अनुभव के बाद स्‍टार बने कलाकारों ने निजी बातचीत में स्‍वीकार किया है कि हाई स्‍कूल तक आते-आते उनके दोस्‍तों का व्‍यवहार बदल जाता है। वे या तो दूरी बना लेते हैं या उनकी अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। दोनों ही स्थितियों में सितारों के बच्‍चे समाज से कट जाते हैं। उनका बचपन नार्मल नहीं रह जाता। वे दूसरे सितारों के बच्‍चों के साथ नकली और दिखावटी दुनिया में बड़े होते हैं।
आयुष्‍मान खुराना और शुजीत सरकार का परिवार मुंबई में नहीं रहता। दोनों ने अपने परिवार अपने जन्‍म स्‍थान में रखे हैं। आयुष्‍मान खुराना का परिवार चंडीगढ़ में रहता है और शुजीत सरकार को कोलकाता में। इस तरह वे अपने बच्‍चों को फिल्‍म इंडस्‍ट्री की रोजमर्रा चमक-दमक से दूर रखते हैं। संचार माध्यमों और यातायात की सहूलियतें बढ़ने से इस स्‍तर के कलाकारों के लिए फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां से ऑपरेट करते हैं। इन दिनों फिल्‍म इंडस्‍ट्री की सेलिब्रिटी के साथ दूसरे संपन्‍न लोग भी अपने परिवारों और बच्‍चों को महानगरीय शोरगुल से अलग रखते हैं। बच्‍चे थोड़े बड़े होते ही देश-विदेश के बोर्डिंग स्‍कूलों में चले जाते हैं। यह अलग बात है कि इस प्रक्रिया में उन्‍हें दुनिया का सामान्‍य ज्ञान भी नहीं मिल पाता। बार में फिल्‍मों में आने पर वे अपनी पिछली पीढि़यों की तरह समाज से परिचित नहीं होते। यह उनकी फिल्‍मों और किरदारों में साफ दिखता है।
अपने बच्‍चों की सेहत,सुरक्षा और करिअर के लिए स्‍टार मां-बाप देश के किसी दूसरे नागरिक के समान ही चिंतित रहते हैं। किशोर उम्र में उनकी जिद और भटकन से वे भी व्‍यथ्ति होते हैं। कहेश भट्ट ने अपने कॉलम में कभी लिखा था कि वे अपनी बेटियों की सुरक्षा के लिए परेशान हो जाते हैं। एक बार उनकी बेटी शाहीन या आलिया किसी डिस्‍को पार्टी में चली गई थीं और देर रात हो गई थी। उन्‍होंने किसी सामान्‍य पिता की तरह अपनी चिंता जाहिर की थीं। हाल-फिलहाल में एक बार शाह रूख खान के इंटरव्‍यू के लिए हम उनके वैनिटी वैन में आए तो उन्‍हें फोन पर देखा। वे मेाबाइल पर किसी से बात कर रहे थे। उनके स्‍वर में चिंता थी। पता चला कि सुहाना परीक्षा के बाद अपनी दोस्‍तों के साथ पार्टी पर जा रही हैं। पिता शाह रूख खान चिंतित थे कि उसने सिक्‍युरिटी गार्ड साथ में लिए हैं कि नहीं। और चलते-चलते यह भी पूछ लिया कि पैसे हैं न? ठीक वैसे ही जैसे हम अपनी बेटियों से आश्‍वस्‍त होते हैं कि उनके पास पैसे हैं न?
कुछ समय पहले किरण राव से मुलाकात हुई। औपचारिक इंटरव्‍यू के बाद उनके बेटे आजाद के बारे में बात होने लगी। आजाद की अच्‍छी परवरिश की योजनाओं के बीच उन्‍हें यह खयाल रखना पड़ता है कि वह सुरक्षित रहे। उसे खेलने और बचपन की अन्‍य गतिविधियों के लिए भेजा जाता है,लेकिन आसपास गार्ड मौजूद रहते हैं। यही स्थिति सभी पॉपुलर सेलिब्रिटी के बच्‍चों के साथ रहती है। उन बच्‍चों पर क्‍या गुजरती होगी? क्‍या वे सामान्‍य तरीके से बड़े होते हैं? छोटी उम्र में ही अतिरिक्‍त ध्‍यान मिलने से उनकी सोच-समझ तो प्रभावित होगी। देश के सामान्‍य नागरिकों के प्रति उनकी क्‍या धारणा बनती है? अनेक सवाल हैं।
 

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