दरअसल : सारागढ़ी का युद्ध



दरअसल...
सारागढ़ी का युद्ध
-अजय ब्रह्मात्‍मज

तीन दिन पहले करण जौहर और अक्षय कुमार ने ट्वीट कर बताया कि वे दोनों केसरी नामक फिल्‍म लेकर आ रहे हैं। फिल्‍म के निर्देशक अनुराग सिंह रहेंगे। यह फिल्‍म बैटल ऑफ सारागढ़ी पर आधारित होगी। चूंकि सारागढ़ी मीडिया में प्रचलित शब्‍द नहीं है,इसलिए हिंदी अखबारों में ‘saragarhi’ को सारागरही लिखा जाने लगा। फिल्‍म इंडस्‍ट्री में भी अधिकांश इसे सारागरही ही बोलते हैं। मैं लगातार लिख रहा हूं कि हिंदी की संज्ञाओं को अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी लिखा जाना चाहिए। अन्‍यथा कुछ पीढि़यों के बाद इन शब्‍दों के अप्रचलित होने पर सही उच्‍चारण नहीं किया जाएगा। देवनागरी में लिखते समय लोग सारागरही जैसी गलतियां करेंगे। दोष हिंदी के पत्रकारों का भी है कि वे हिंदी का आग्रह नहीं करते। अंग्रेजी में आई विस्‍प्तियों का गलत अनुवाह या प्यिंतरण कर रहे होते हैं।
बहरहाल,अक्षय कुमार और करण जौहर के आने के साथ सारागढ़ी का युद्ध पर फिल्‍म बनाने की तीसरी टीम मैदान में आ गई है। करण जौहर की अनुराग सिंह निर्देशित फिल्‍म का नाम केसरी रखा गया है। इसके पहले अजय देवगन ने भी इसी पृष्‍ठभूमि पर एक फिल्‍म की घोषणा की थी। कहते हैं अगस्‍त महीने में करण जौहर और काजोल के बीच पुन: दोस्‍ती हो जाने के बाद अपनी फिल्‍म विलंबित कर दी। वे करण जौहर की फिल्‍म से टकराना नहीं चाहते। पिछली फिल्‍म के समय दोनों के बीच बदमजगी हो चुकी है। सारागढ़ी का युद्ध की पृष्‍ठभूमि पर ही राजकुमार संतोषी की फिल्‍म निर्माणाधीन है। इस फिल्‍म में रणदीप हुडा केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं। अक्षय कुमार,अजय देगन और रणदीप हुडा के स्‍टारडम,अभिनय दक्षता और करिअर को ध्‍यान में रखें तो अजय देवगन ईशर सिंह की भूमिका के लिए उपयुक्‍त लगते हैं। यह ठीक है कि रणदीप हुडा अपने किरदारों पर मेहनत करते हैं। वे ईशर सिंह को भी जीवंत कर सकते हैं। अक्षय कुमार का तो जादुई समय चल रहा है। वे हर प्रकार की भूमिका में जंच रहे हैं।
सारागढ़ी का युद्ध है क्‍या?‍ पिछली सदियों के युद्धों में से एक सारागढ़ी का युद्ध वीरता और साहस के लिए विख्‍यात है।

अविभाजित भारत में अंग्रेजों ने अपन स्थिति मजबूत करने के साथ सीमाओं की चौकसी आरंभ कर दी थी। हमेशा की तरह उत्‍र पश्चिमी सीमांत प्रांत की तरफ से आक्रमणकारियों का खतरा जारी था। उनसे बचाव के लिए लॉकफोर्ट और गुलिस्‍ता फोट्र बनाए गए थे। दुर्गम इलाका होने और दोनों फरेर्ट के गीच संपर्क स्‍‍थापित करने के उद्देश्‍य से दोनों फोर्ट के बीच में सारागढ़ी पोस्‍ट बनार्ब गई थी। पोस्‍ट पर तैनात सैनिक मुस्‍तैदी से आततायी लश्‍करों पर नजर रखते थे।
12 सितंबर 1897 की घटना है। सारागढ़ी पोस्‍ट पर तैनात सैनिकों ने देखा की अफगानों का लश्‍कर पोस्‍अ की तरफ बड़ा चला आ रहा है। वहां से सैनिकों ने गुलिस्‍तान फोर्ट पर हेलिकॉग्राफ से मदद के लिए संदेश भेजा,लेकिन वहां मौजूद अंग्रेज फौजी अधिकारी मदद करने में असमर्थ रहा। आक्रमणकारी लश्‍कर में 10,000 से अधिक सैनिक थे। ऐसी स्थिति में सारागढ़ी पोस्‍ट पर मौजूद 21 जवानों की अुकड़ी ने हवलदार ईशर सिंह के नेतृत्‍व में पोस्‍ट की रक्षा के लिए लढ़ने का फैसला किया। दिन भर युद्ध चला। यह अलग बात है कि इस युद्ध में वे खेत आए,लेकिन उन्‍होंने अपने शौर्य और साहस से अफगान सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए थे। उन्‍होंने उन्‍हें दिन भी उलझाए रख। इन जांबाज सैनिकों की बहादुरी की तारीफ ब्रिटिश संसद में हुई और क्‍चीन विक्‍टोरिया ने सभी सैनिकों को वीरता पुरस्‍कार से सम्‍मनित किया। उन्‍हें जमीनों के साथ ईनाम भी दिए गए। सारागढ़ी के युद्ध और स्‍मारक पर मीडिया में लिखा जाना चाहिए।
सारागढ़ी का युद्ध पर फिल्‍म बनना गौरव की बात है,लेकिन एक साथ तीन फिल्‍मों का बनना कुछ सालों पहले भगत सिंह के जीवन पर बनी छह फिल्‍मों की याद दिला रहा है।


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