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फिल्‍म समीक्षा : सिंघम रिटर्न्‍स

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-अजय ब्रह्मात्‍मज              रोहित शेट्टी एक बार फिर एक्शन ड्रामा लेकर आ गए हैं। तीन सालों के बाद वे 'सिंघम रिटर्न्‍स' में बाजीराव सिंघम को लेकर आए हैं। इस बीच बाजीराव सिंघम मुंबई आ गया है। उसकी पदोन्नति हो गई है। अब वह डीसीपी है, लेकिन उसका गुस्सा, तेवर और समाज को दुरुस्त करने का अभिक्रम कम नहीं हुआ है। वह मुंबई पुलिस की चौकसी, दक्षता और तत्परता का उदाहरण है। प्रदेश के मुख्यमंत्री और स्वच्छ राजनीति के गुरु दोनों उस पर भरोसा करते हैं। इस बार उसके सामने धर्म की आड़ में काले धंधों में लिप्त स्वामी जी हैं। वह उनसे सीधे टकराता है। पुलिस और सरकार उसकी मदद करते हैं। हिंदी फिल्मों का नायक हर हाल में विजयी होता है। बाजीराव सिंघम भी अपना लक्ष्य हासिल करता है।              रोहित शेट्टी की एक्शन फिल्मों में उनकी कामेडी फिल्मों से अलग कोशिश रहती है। वे इन फिल्मों में सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को पिरोने की कोशिश करते हैं। उनकी पटकथा वास्तविक घटनाओं और समाचारों से प्रभावित होती है। लोकेशन और पृष्ठभूमि भी वास्तविक धरातल पर रहती है। उनके किरदार समाज का हिस्सा होने के साथ

फिल्‍म समीक्षा : हवा हवाई

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  अमोल गुप्ते में बाल सुलभ जिज्ञासा और जीत की आकांक्षा है। उनके बाल नायक किसी होड़ में शामिल नहीं होते, लेकिन अपनी जीतोड़ कोशिश से स्वयं ही सबसे आगे निकल जाते हैं। इस वजह से उनकी फिल्में नैसर्गिक लगती हैं। फिल्म निर्देशन और निर्माण किसी विचार की बेहतरीन तकनीकी प्रोसेसिंग है, जिसमें कई बार तकनीक हावी होने से कृत्रिमता आ जाती है। अमोल गुप्ते इस कृत्रिमता से अपनी फिल्मों को बचा लेते हैं। अमोल गुप्ते की 'हवा हवाई' के बाल कलाकार निश्चित ही उस परिवेश से नहीं आते हैं, जिन किरदारों को उन्होंने निभाया है। फिर भी उनकी मासूमियत और प्रतिक्रिया सहज और सरल लगती है। उनके अभिनय में कथ्य या उद्देश्य का दबाव नहीं है। एक मस्ती है। कुछ सपने सोने नहीं देते। अर्जुन हरिश्चंद्र वाघमारे उर्फ राजू का भी एक सपना है। पिता की मृत्यु के बाद वह एक चायवाले के यहां काम करता है। कुछ बच्चों को रोलरब्लेडिंग करते देख कर उसकी भी इच्छा होती है कि अगर मौका मिले तो वह भी अपने पांवों पर सरपट भाग सकता है। पहली समस्या तो यही है कि रोलरब्लेड कहां से आए? उसकी कीमत के पैसे तो हैं नहीं। र