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किरदार से हो गई है दोस्‍ती-अर्जुन कपूर

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रियल और रिलेटेबल किरदार है मेरा-अर्जुन कपूर -अजय ब्रह्मात्मज     अपनी नई फिल्म ‘टू स्टेट्स’ के प्रचार में व्यस्त अर्जुन कपूर अब पहले की तरह मीडिया से बचने की कोशिश नहीं करते। उन्होंने इसकी जरूरत समझ ली है। ‘टू स्टे्टस’ की रिलीज के पहले उन्होंने अपनी बातें रखीं।     सीखते रहते हैं एक्टिंग हम अपने प्रोफेशन से बड़े नहीं हो सकते। हमेशा सीखते रहना पड़ता है। यह ड्रायविंग और स्विमिंग से अलग है। आप देखें कि अमिताभ बच्चन आज भी सीखने की बात कहते हैं। ‘औरंगजेब’ के समय पहली बार लगा कि मैं किरदार मेंं घुस गया हूं। अपने कैरेक्टर की ओपनिंग के सीन में एहसास हुआ कि मुझे अब एक्टिंग ही करनी है और मैं कर सकता हूं। उसके बाद से मेरी मेहनत बढ़ गई। अब कोशिश रहती है कि कैरेक्टर को क्रैक कर लूं।     मैं ‘गुंडे’ और ‘टू स्टेट्स’ की शूटिंग साथ कर रहा था। ‘टू स्टेट्स’ का हीरो एकदम नार्मल है, जबकि ‘गुंडे’ का किरदार ड्रैमेटिक था। ‘गुंडे’ हिंदी सिनेमा के पापुलर फार्मेट में था। ‘टू स्टेट्स’ में वह आम लडक़ों की तरह होता है। इसके संवाद याद कर के नहीं जाता था। वहीं बोल देता था। ताकि सब कुछ नैचुरल लगे। आप देखेंगे कि मैं

फिल्‍म समीक्षा : गुंडे

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दोस्ती-दुश्मनी की चटख कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज यशराज फिल्म्स की अली अब्बास जफर निर्देशित 'गुंडे' देखते समय आठवें दशक की फिल्मों की याद आना मुमकिन है। यह फिल्म उसी पीरियड की है। निर्देशक ने दिखाया भी है कि एक सिनेमाघर में जंजीर लगी हुई है। यह विक्रम और बाला का बचपन है। वे बडे होते हें तो 'मिस्टर इंडिया' देखते हैं। हिंदी फिल्में भले ही इतिहास के रेफरेंस से आरंभ हों और एहसास दें कि वे सिनेमा को रियल टच दे रही हैं, कुछ समय के बाद सारा सच भहरा जाता है। रह जाते हैं कुछ किरदार और उनके प्रेम, दुश्मनी, दोस्ती और बदले की कहानी। 'गुंडे' की शुरुआत शानदार होती है। बांग्लादेश के जन्म के साथ विक्रम और बाला का अवतरण होता है। श्वेत-श्याम तस्वीरों में सब कुछ रियल लगता है। फिल्म के रंगीन होने के साथ यह रियलिटी खो जाती है। फिर तो चटखदार गाढ़े रंगों में ही दृश्य और ड्रामा दिखाई पड़ते हैं। लेखक-निर्देशक अली अब्बास जफर ने बिक्रम और बाला की दोस्ती की फिल्मी कहानी गढी है। ऐसी मित्रता महज फिल्मों में ही दिखाई पड़ती है, क्योंकि जब यह प्रेम या किसी और वजह से टूटती है तो

फिल्म समीक्षा : औरंगजेब

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-अजय ब्रह्मात्मज  अरसे बाद अनेक किरदारों के साथ रची गई नाटकीय कहानी पर कोई फिल्म आई है। फिल्म में मुख्य रूप से पुरुष किरदार हैं। स्त्रियां भी हैं, लेकिन करवाचौथ करने और मां बनने के लिए हैं। थोड़ी एक्टिव और जानकार महिलाएं निगेटिव शेड लिए हुए हैं। फिल्म में एक मां भी हैं, जो यश चोपड़ा की फिल्मों की मां [निरुपा राया और वहीदा रहमान] की याद दिलाती हैं। सपनों और अपनों के द्वंद्व और दुविधा पर अतुल सभरवाल ने दिल्ली के गुड़गांव के परिप्रेक्ष्य में क्राइम थ्रिलर पेश किया है। यशराज फिल्म्स हमेशा से सॉफ्ट रोमांटिक फिल्में बनाता रहा है। यश चोपड़ा और आदित्य चोपड़ा की देखरेख में इधर कुछ सालों में कॉमेडी या रॉमकॉम भी आए, लेकिन अपराध की पृष्ठभूमि पर बनी यशराज फिल्म्स की यह प्रस्तुति नयी और उल्लेखनीय है। अतुल सभरवाल ने हमशक्ल जुड़वां अजय और विशाल के लिए अर्जुन कपूर को चुना है। दूसरी फिल्म में ही डबल रोल करते अर्जुन कपूर के एक्सप्रेशन की सीमाओं को नजरअंदाज कर दें तो उन्होंने एक्शन और मारधाड़ दृश्यों में अच्छा काम किया है। अजय बिगड़ैल और दुष्ट मिजाज का लड़का है और विशाल सौम्य और सभ्य दिमाग का..

फिल्‍म समीक्षा : इशकजादे

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मसालेदार फार्मूले में रची -अजय ब्रह्मात्‍मज एक काल्पनिक बस्ती है अलमोर। लखनऊ के आसपास कहीं होगी। वहां कुरैशी और चौहान परिवार रहते हैं। जमींदार,जागीरदार और रईस तो अब रहे नहीं,इसलिए सुविधा के लिए उन्हें राजनीति में दिखा दिया गया है। कुरैशी परिवार के मुखिया अभी एमएलए है। चुनाव सिर पर है। चौहान इस बार बाजी मारना चाहते हैं। मजेदार है कि दोनों निर्दलीय हैं। देश में अब कौन से विधान सभा क्षेत्र बचे हैं,जहां राजनीतिक पाटियों का दबदबा न हो? निर्दलियों के जीतने के बाद भी उनके झंडे और नेता तो नजर आने चाहिए थे। देश में समस्या है कि काल्पनिक किरदारों को किसी पार्टी का नहीं बताया जा सकता। कौन आफत मोल ले? दोनों दुश्मन परिवारों के नई पीढ़ी जवान हो चुकी है। इशकजादे का नायक चौहान परिवार का है और नायिका कुरैशी परिवार की। यहां से कहानी शुरू होती है। परमा और जोया लंपट और बदतमीज किस्म के नौजवान हैं। हिंदी फिल्मों के नायक-नायिका के प्रेम के लिए जरूरी अदतमीजी में दोनों काबिल हैं। उन्हें कट्टे और पिस्तौल से प्यार है। मनमानी करने में ही उनकी मौज होती है। दोनों परिवारों में बच्चों को बचपन स

मोना कपूर की मौत

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- अजय ब्रह्मात्मज उस दिन सुबह से ट्विटर पर एक खास ग्रुप के ब्लड की जरूरत को फिल्म बिरादरी से जुड़े सभी लोग रीट्विट कर रहे थे। यह तो समझ में आ गया था कि फिल्म इंडस्ट्री के किसी खास व्यक्ति की तबियत क्रिटिकल हो चुकी है। लगभग 12 बजे मेरी एक दोस्त ने ट्विटर पर दिए गए नंबर पर फोन किया, तो पता चला कि काफी ब्लड डोनेटर मिल गए हैं। अब कोई जरूरत नहीं है। पता चला कि अगले दिन हिंदुजा अस्पताल में उक्त मरीज के लिए ब्लड की जरूरत थी। कुछ मिनट ही बीते होंगे कि ट्विट पर मोना कपूर आरआईपी की सूचना आ गई। मोना कपूर को फिल्म बिरादरी के लोग अच्छी तरह जानते थे और पत्रकार भी। बोनी कपूर की पत्‍‌नी मोना कपूर ने तलाक नहीं लिया था। केवल अमिताभ ब"ान ने अपने ट्विट में उन्हें बोनी कपूर की पत्‍‌नी बताते हुए शोक जाहिर किया था। वे ब्याह कर गए घर में ही अपने सास-श्वसुर, (श्वसुर सुरेंद्र कपूर, जो हाल ही में गुजरे हैं) देवर और पटरानी के साथ रहती रहीं। उन्होंने अपने बेटे अर्जुन और बेटी अंशुला की सिंगल पैरेंट की तरह परवरिश की। वे फ्यूचर स्टूडियो की मालकिन थीं। जिंदादिल और सभी की गतिविधियों में रुचि रखने व