Posts

माधुरी दीक्षित और जुही चावला भिड़ंत

गुलाब गैंग में माधुरी दीक्षित और जुही चावला की यह भिड़ंत मुझे देखनी है। आप का क्‍या इरादा है ?

दरअसल : निराश कर रहे हैं नसीर

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     मालूम नहीं यह मजबूरी है या लापरवाही। 2013 में आई नसीरुद्दीन शाह की सभी फिल्मों में उनका काम साधारण रहा। पिछले साल उनकी ‘सोना स्पा’, ‘जॉन डे’ और ‘जैकपॉट’ तीन फिल्में आईं। तीनों फिल्मों में उनकी भूमिकाएं देख कर समझ में नहीं आया कि उन जैसे सिद्ध और अनुभवी कलाकार ने इन फिल्मों के लिए हां क्यों कहा होगा? फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा है कि इन दिनों नसीरुद्दीन शाह फिल्मों में अपना रोल नहीं देखते। उनकी नजर रकम पर रहती है। अगर पैसे सही मिल रहे हों तो वे किसी भी फिल्म के लिए हां कह सकते हैं। एक संवेदनशील, प्रशिक्षित और पुरस्कृत कलाकार का यह विघटन तकलीफदेह है।     इसी हफ्ते उनकी फिल्म ‘डेढ़ इश्किया’ आएगी। विशाल भारद्वाज के प्रोडक्शन की इस फिल्म के निर्देशक उनके सहयोगी अभिषेक चौबे हैं। अभिषेक चौबे की पहली फिल्म ‘इश्किया’ में उनकी और अरशद की जोड़ी जमी थी। ऊपर से विद्या बालन की मादक छौंक ने फिल्म को पॉपुलर कर दिया था। इस बार अभिषेक चौबे ने फिल्म में माधुरी दीक्षित और हुमा कुरेशी को नसीर और अरशद के साथ लिया है। माना जा रहा है और ऐसा लग भी रहा है कि पर्दे पर नसीर और माधुरी के अंतरं

बेटी के नाम फिल्‍मकार पिता का पत्र

Image
चवन्‍नी के पाठकों के लिए सिनेमा के भविष्‍य पर बेटी फ्रांसेस्‍का को लिखा पिता मार्टिन स्‍कॉर्सिस का पत्र  Dearest Francesca, I’m writing this letter to you about the future. I’m looking at it through the lens of my world. Through the lens of cinema, which has been at the center of that world. For the last few years, I’ve realized that the idea of cinema that I grew up with, that’s there in the movies I’ve been showing you since you were a child, and that was thriving when I started making pictures, is coming to a close. I’m not referring to the films that have already been made. I’m referring to the ones that are to come. I don’t mean to be despairing. I’m not writing these words in a spirit of defeat. On the contrary, I think the future is bright. We always knew that the movies were a business, and that the art of cinema was made possible because it aligned with business conditions. None of us who started in the 60s and 70s had any illusions on that front. We

संग-संग : सुशांत सिंह और मोलिना

Image
-अजय ब्रह्मात्मज - घर का मालिक कौन है? मोलिना - कभी सोचा नहीं। कभी कोई निर्णय लेना होता है तो इकटृठे ही सोचते हैं। सलाह-मशवरा तो होता ही है। अगर सहमति नहीं बन रही हो तो एक-दूसरे को समझाने की कोशिश करते हैं। जो अच्छी तरह से समझा लेता है उसकी बात चलती है। उस दिन वह मालिक हो जाता है। ऐसा कुछ नहीं है कि जो मैं  बोलूं वही सही है या जो ये बोलें वही सही है। सुशांत - हमने तो मालिक होने के बारे में सोचा ही नहीं। कहां उम्मीद थी कि कोई घर होगा। इन दिनों तो वैसे भी मैं ज्यादा बाहर ही रहता हूं। घर पर क्या और कैसे चल रहा है? यह सब मोलिना देखती हैं। कभी-कभी मेरे पास सलाह-मशविरे का भी टाइम नहीं होता है। आज कल यही मालकिन हैं। वैसे जब जो ज्यादा गुस्से में रहे, वह मालिक हो जाता है। उसकी चलती है। मोलिना - मतलब यही कि जो समझा ले जाए। चाहे वह जैसे भी समझाए। प्यार से या गुस्से से। सुशांत - मेरी पैदाइश बिजनौर की है। मैं पिता जी के साथ घूमता रहा हूं। बिजनौर तो केवल छुट्टियों में जाते थे। नैनीताल में पढ़ाई की। कॉलेज के लिए दिल्ली आ गया। किरोड़ीमल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। स्कूल से ही नाटकों का शौक था। एक म

Khalid Mohammed : The Man Who Knows Too Much

Image
चवन्‍नी के पाठकों के लिए यह लेख ओपन मैग्जिन से। खालिद मोहम्‍मद से श्रद्धा सुकुमारन ने बात की है। फिल्‍मों पत्रकार इसे अवश्‍य पढ़ें। पढ़ने के बाद खुद को चिकोटी काट कर देख लें कि ने सच्‍चाई से कितने रुबरु हैं।  In more than 30 years of showbiz journalism, Mohamed has seen it all. The film critic and director reveals how movie stars became his surrogate family and why his new book is his last connection with the industry  Media FAN BOY Khalid Mohamed says that he used to be a ‘fan boy’ before public relations ruined the thrill of the exclusive (Photo: ASHISH SHARMA) As media editor at The Times Of India ( TOI ), Khalid Mohamed was Filmfare editor and hosted its awards for nine years. He was influential too as the newspaper’s film critic for 27 years. Unsurprisingly, he formed deep associations with several movie stars, even seeing some of them as surrogate family. Among the books he authored was To Be Or Not To Be , a biography of Amitabh Ba

निडर हो गई हूं-दीपिका पादुकोण

Image
जन्मदिन विशेेष (5 जनवरी 1986 को पैदा हुई दीपिका पादुकोण ने हिंदी फिल्मों में कामयाबी का नया कीर्तिमान स्थापित किया है। ऐसी कामयाबी के बाद अभिनेत्रियों की चाल और सोच टेढ़ी हो जाती है। दीपिका में भी परिवत्र्तन आया है। अब वह अधिक संयत,समझदार और सचेत हो गई हैं। वह देश के पॉपुलर अभिनेताओं के समकक्ष दिख रही हैं।) -अजय ब्रह्मात्मज     हाल ही में  दीपिका पादुकोण ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अपने परिचितों, दोस्तों और शुभचिंतकों को एक पंचतारा होटल में आमंत्रित किया। वह अपनी कामयाबी को सभी के साथ सेलिब्रेट कर रही थी। इस अवसर पर फिल्म इंडस्ट्री के महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों ने उपस्थिति दर्ज की। निस्संदेह दीपिका हीरोइनों की कतार में सबसे आगे आ खड़ी हुई हैं। छह साल पहले फराह खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ से धमाकेदार शुरुआत करने के बाद कुछ फिल्मों में दीपिका की चमक फीकी हुई। आदतन आलोचकों और पत्रकारों ने उन्हें ‘वन फिल्म वंडर’ की संज्ञा दे दी। कहा जाने लगा कि फिर से उन्हें किसी शाहरुख खान की जरूरत पड़ेगी। निराशा के इसी दौर में दीपिका का प्रेम टूटा। असफलता के इस अकेलेपन को उन्होंने किसी खिलाड़ी की तरह अभ

फिल्‍म समीक्षा : शोले 3 डी

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज  इस फिल्म की समीक्षा दो हिस्सों में होगी। पहले हिस्से में हम 'शोले' की याद करेंगे और दूसरे हिस्से में 3 डी की बात करेंगे।  15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई 'शोले' को आरंभ में न तो दर्शक मिले थे और न समीक्षकों ने इसे पसंद किया था। दर्शकों की प्रतिक्रिया से निराश फिल्म की यूनिट क्लाइमेक्स बदलने तक की बात सोचने लगी थी। अपने समय की सर्वाधिक महंगी और आधुनिक तकनीक से संपन्न 'शोले' से फिल्म के निर्माता-निर्देशक ने भारी उम्मीद बांध रखी थी। आज का दौर होता तो फिल्म सिनेमाघरों से उतार दी गई होती, तब की बात कुछ और थी। 'शोले' की मनोरंजक लपट दर्शकों ने धीरे-धीरे महसूस की। दर्शकों का प्यार उमड़ा और फिर इस फिल्म ने देश के विभिन्न शहरों में सिल्वर जुबली और गोल्डन जुबली के रिकार्ड बनाए। मुंबई के मिनर्वा थिएटर में यह फिल्म लगातार 240 हफ्तों तक चलती रही थी। आज के युवा दर्शक इसकी कल्पना नहीं कर सकते, क्योंकि अभी की हिट फिल्में भी 240 शो पार करते-करते दम तोड़ देती हैं। तब आंकड़ों में पैसों की नहीं दर्शकों की गिनती होती थी। कह सकते हैं कि 'श

Remembering Farooque Sir… -swara bhaskar

Image
चवन्‍नी के पाठकों के लिए फारुख शेख पर लिखा स्‍वरा भास्‍कर का संस्‍मरण्‍ा इसे mofightclub से लिया गया है। This is a guest post by actor Swara Bhaskar . She worked with Farooque Shaikh in her film Listen Amaya. Perhaps the most vivid memory I have of the iconic and gentlemanly Farooque Shaikh is from the second day of shooting Listen Amaya. We were in the chaotic and uncontrolled environs of the Paraathhey Wali Gali of Old Delhi, trying to shoot sync-sound (!) a long conversational scene. It was hot, noisy and the narrow lane was becoming increasingly stuffed with curious onlookers since word had got around that the much-loved veteran actor was in Puraani Dilli. We were between shots and had eaten a large number of paraathhaas, and the production had relaxed the ‘set-lock’ so that crowds could go about their morning routine. Two scrawny men, hands-in-one-another’s-neck in the classic Indian male camaraderie pose sauntered by. One of them spotted Farooque sir and started.

शोले अब हुई 3 डी

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज 'शोले 3 डी' फिल्म शुक्रवार को रिलीज हो रही है, लेकिन 'शोले' के निर्देशक रमेश सिप्पी का इस फिल्म से कोई लेना-देना नहीं है। वह नहीं चाहते थे कि 'शोले' को किसी भी रूप में बदला जाए। इस फिल्म का अधिकार रमेश सिप्पी के भतीजे साशा सिप्पी के पास है। उन्होंने 'शोले 3 डी' को नए प्रोडक्शन शोले मीडिया के नाम से बनाया है। इस फिल्म का 3 डी रूपांतरण केतन मेहता की देखरेख में माया मैजिक ने किया है। इस पर 20 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए हैं, जबकि मूल फिल्म दो करोड़ से कम लागत में बनी थी। आइए जानते हैं असली शोले से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां। -1975 में रिलीज हुई 'शोले' को समीक्षकों ने नापसंद किया था। -एक समीक्षक ने तो 'शोले' को 'छोले' कहा था। -पांच हफ्ते के बाद 'शोले' के दर्शक बढ़े और बढ़ते ही गए। -'शोले' के साथ रिलीज हुई 'जय संतोषी मां' भी सुपरहिट फिल्म थी। -रमेश सिप्पी की 'अंदाज', 'सीता और गीता' के बाद तीसरी फिल्म थी 'शोले'। -गब्बर नाम का एक डकैत मध्यप्रदेश में था। वह पु

दरअसल : 2013 की उपलब्धि हैं राजकुमार और निम्रत

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     बाक्स आफिस और लोकप्रियता के हिसाब से कलाकारों की बात होगी तो राजकुमार राव और निम्रत कौर किसी भी सूची में शामिल नहीं हो पाएंगे। चरित्र, चरित्रांकन और प्रभाव के एंगल से बात करें तो पिछले साल आई हिंदी फिल्मों के कलाकारों में उन दोनों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा। हंसल मेहता निर्देशित ‘शाहिद’ और रितेश बत्रा निर्देशित ‘द लंचबाक्स’ देखने के बाद आप मेरी राय से असहमत नहीं हो सकेंगे। दोनों कलाकारों ने अपने चरित्रों को आत्मसात करने के साथ उन्हें खास व्यक्तित्व दिया। दोनों अपनी-अपनी फिल्मों में इतने सहज और स्वाभाविक हैं कि फिल्म देखते समय यह एहसास नहीं रहता कि व्यक्तिगत जीवन में राजकुमार राव और निम्रत कौर कुछ और भी करते होंगे।     हिंदी फिल्मों में कभी-कभार ही ऐसे कलाकारों के दर्शन होते हैं। समीक्षक, दर्शक और फिल्म पत्रकार इन्हें अधिक तरजीह नहीं देते, क्योंकि ये फिल्म से पृथक नहीं होते। इनके बारे में चटपटी टिप्पणी नहीं की जा सकती। इनकी स्वाभाविकता को व्याख्यायित नहीं किया जा सकता। दूसरे कथित स्टारडम नहीं होने से इन्हें अपेक्षित लाइमलाइट नहीं मिल पाता। ‘शाहिद’ और ‘द लंचबाक