Posts

दरअसल : सेंसर के यू/ए सर्टिफिकेट का औचित्य

Image
अजय ब्रह्मात्मज अगर आप केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की हिंदी वेबसाइट पर जाएंगे तो वहां पहले पृष्ठ पर ही बताया गया है कि किन-किन श्रेणियों में प्रमाण पत्र दिए जाते हैं। चार श्रेणियां हैं- अंग्रेजी में उन्हें यू, यू/ए, ए और एस कहते हैं। हिंदी में उन्हें अ, व /अ और अ लिखा गया है। हिंदी में चौथी श्रेणी एस का विवरण नहीं है। इसके साथ सेंसर प्रमाणन बोर्ड के हिंदी पृष्ठ पर वर्तनी की अनेक गलतियां हैं। सबसे पहले तो सूचना और प्रसारण मंत्रालय में सूचना को ही ‘सुचना’ लिखा गया है। नीचे उद्धृत पंक्तियों में दर्षक, प्रर्दषण, और मार्गदर्षन भी गलत लिखे गए हैं। चलचित्र अधिनियम, 1952, चलचित्र (प्रमाणन) नियम,1983 तथा 5 (ख) के तहत केन्द्र सरकार द्वारा जारी किए गए मार्गदर्शिका का अनुसरण करते हुए प्रमाणन की कार्यवाही की जाती है। फिल्मों को चार वर्गों के अन्तर्गत प्रमाणित करते हैं। ’ अ’- अनिर्बन्धित सार्वजनिक प्रदर्षन ’व’- वयस्क दर्षकों के लिए निर्बन्धित ’अव’- अनिर्बन्धित सार्वजनिक प्रर्दषन के लिए किन्तु 12 वर्ष से कम आयु के बालक/बालिका को माता-पिता के मार्गदर्षन के साथ फिल्म देखन

‘3 इडियट’ के तीनों इडियट ही ला रहे हैं ‘पीके’

Image
आमिर खान ने आगामी फिल्म ‘पीके’ के प्रचार के लिए इस बार नया तरीका अनपाया है। वे इस फिल्म की टीम के साथ सात शहरों की यात्रा पर निकले हैं। आज पटना से इसकी शुरुआत हो रही है। इस अभियान में वे ‘3 इडियट’ का प्रदर्शन करेंगे और फिर आमंत्रित दर्शकों से बातचीत करेंगे। पटना के बाद वे बनारस, दिल्ली, अहमदाबाद, हैदराबाद, जयपुर और रायपुर भी जाएंगे। पटना के लिए उड़ान भरने से पहले उन्होंने अजय ब्रह्मात्माज से खास बातचीत की। प्रचार के इस नए तरीके के आयडिया के बारे में बताएं ? हमलोग ‘3 इडियट’ दिखा रहे हैं। मकसद यह बताने का है कि ‘3 इडियट’ की टीम एक बार फिर आ रही है। इस बार वही टीम ‘पीके’ ला रही है। ‘3 इडियट' के तीनो इडियट राजू,विनोद और मैं अब ‘पीके’ लेकर आ रहे हें। हमलोग तयशुदा सात शहरों में ‘3 इडियट’ की स्क्रीनिंग करेंगे। इस स्क्रीनिंग में आए लोगों के साथ फिल्म खत्म होने के बाद हमलोग बातचीत करेंगे। कोशिश है कि हमलोग ग्रास रूट के दर्शकों से मिलें। पटना से शुरूआत करने की कोई खास वजह...? पटना से शुरूआत करने की यही वजह है कि ‘पीके’ में मेरा किरदार भोजपुरी बोलता है। वास्तव में हमलो

दरअसल : पर्दे पर आम आदमी

Image
-अजय ब्रह्मात्मज फिल्में आमतौर पर भ्रम और फंतासी रचती हैं। इस रचना में समाज के वास्तविक किरदार भी पर्दे पर थोड़े नकली और नाटकीय हो जाते हैं। थिएटर में भी यह परंपरा रही है। भाषा, लहजा, कॉस्ट्यूम और भाव एवं संवादों की अदायगी में किरदारों को लार्जर दैन लाइफ कर दिया जाता है। माना जाता है कि इस लाउडनेस और अतिरंजना से कैरेक्टर और ड्रामा दर्शकों के करीब आ जाते हैं। हिंदी सिनेमा में लंबे समय तक इस लाउडनेस पर जोर रहा है। भारत में पहले इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के आयोजन के बाद इतालवी यर्थाथवाद से प्रभावित होकर भारतीय फिल्मकारों ने सिनेमा में यर्थाथवादी स्थितियों और चरित्रों का चित्रण आरंभ किया। उस प्रभाव से सत्यजीत राय से लेकर श्याम बेनेगल तक जैसे निर्देशकों का आगमन हुआ। इन सभी ने सिनेमा में यथार्थ और वास्तविकता पर जोर दिया। सत्यजीत राय यर्थाथवादी सिनेमा के पुरोधा रहे और श्याम बेनेगल के सान्निध्य में आए फिल्मकारों ने पैरेलल सिनेमा को मजबूत किया। पैरेलल सिनेमा की व्याप्ति के दौर में कुछ बेहद मार्मिक, वास्तविक और प्रमाणिक फिल्में आईं। इस दौर की बड़ी दुविधा यह रही कि ज्यादातर फिल्

फिल्‍म समीक्षा : भोपाल-ए प्रेयर फॉर रेन

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज  अपने कथ्य और संदर्भ के कारण महत्वपूर्ण 'भोपाल : ए प्रेयर फॉर रेन' संगत और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण के साथ भोपाल गैस ट्रैजेडी का चित्रण करती तो प्रासंगिक और जरूरी फिल्म हो जाती। सन् 1984 में हुई भोपाल की गैस ट्रैजेडी पर बनी यह फिल्म 20वीं सदी के जानलेवा हादसे की वजहों और प्रभाव को समेट नहीं पाती। रवि कुमार इसे उस भयानक हादसे की साधारण कहानी बना देते हैं। 'भोपाल : ए प्रेयर फॉर रेन' की कहानी पत्रकार मोटवानी( फिल्म में उनका रोल पत्रकार राजकुमार केसवानी से प्रेशर है) के नजरिए से भी रखी जाती तो पता चलता कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां तीसरी दुनिया के देशों में किस तरह लाभ के कारोबार में जान-माल की चिंता नहीं करतीं। अफसोस की बात है कि उन्हें स्थानीय प्रशासन और सत्तारूढ़ पार्टियों की भी मदद मिलती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हिंसक और हत्यारे पहलू को यह फिल्म ढंग से उजागर नहीं करती। निर्देशक ने तत्कालीन स्थितियों की गहराई में जाकर सार्वजनिक हो चुके तथ्यों को भी फिल्म में समाहित नहीं किया है। फिल्म में लगता है कि यूनियन कार्बाइड के आला अधिकारी चिंतित और

फिल्‍म समीक्षा : एक्‍शन जैक्‍सन

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज  सही कहते हैं। अगर बुरी प्रवृत्ति या आदत पर आरंभ में ही रोक न लगाई जाए तो वह आगे चल कर नासूर बन जाती है। प्रभु देवा ने फिल्म 'वांटेड' से हिंदी फिल्मों में कदम रखा। तभी टोक देना चाहिए था। वे रीमेक बना रहे हों या कथित ऑरिजिनल कहानी चुन रहे हों। उनकी फिल्में एक निश्चित फॉर्मूले पर ही चलती हैं। उनकी फिल्मों में एक्शन, वायलेंस, डांस, रोमांस... इन चार तत्वों का अनुपात और क्रम बदलता रहता है। कथानक पटकथा और संवाद जैसी चीजें तो भूल ही जाएं। प्रभु देवा शब्दों से ज्यादा दृश्यों में यकीन करते हैं। उनकी फिल्मों में स्क्रिप्ट राइटर से बड़ा योगदान कैमरामैन, साउंड रिकॉर्डिस्ट, कोरियोग्राफर, एक्शन डायरेक्टर और हीरो का होता है। 'एक्शन जैक्सन' में तो उन्होंने दो-दो अजय देवगन रखे हैं। दो हीरोइनें भी हैं - सोनाक्षी सिन्हा और मनस्वी ममगई। दोनों का काम या तो हीरो पर रीझना है या फिर खीझना है। 'एक्शन जैक्सन' जैसी फिल्में देखते समय अजय देवगन सरीखे कद्दावर और लोकप्रिय अभिनेता की बेचारगी का एहसास होता है। 'जख्म', 'तक्षक', 'अपहर

दरअसल : पिता सुखदेव की खोज में बेटी शबनम

Image
-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी में डॉक्युमेंट्री फिल्में कम बनती हैं। जो कुछ बनती हैं,उनमें सामाजिक मुद्दों, सांस्कृतिक समस्याओं और एनजीओ टाइप बहसों पर केंद्रित विषय होते हैं। बायोपिक फिल्मों की तरह डॉक्युमेंट्री भी व्यक्तियों के जीवन पर हो सकती हैं। पिछले 50-60 सालों में कुछ डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर ने मशहूर व्यक्तियों पर आधारित डॉक्युमेंट्री बनाने की कोशिश की। ये कोशिशें ज्यादातर सरल किस्म की जीवनियां बनकर रह गई हैं। उनमें व्यक्तियों के अंतर्विरोध और द्वंद्व पर कम ध्यान दिया गया है। वैसे भी भारतीय समाज में यह मजबूत धारणा है कि मरने के बाद किसी व्यक्ति की आलोचना नहीं करनी चाहिए। उसकी कमियों को उजागर तो नहीं ही करना चाहिए।     इस पृष्ठभूमि में शबनम सुखदेव की डॉक्युमेंट्री द लास्ट अदियू(आखिरी सलाम) उल्लेखनीय प्रयास है। इस डॉक्युमेंट्री में बेटी शबनम अपने पिता सुखदेव की तलाश करती है। सुखदेव की मृत्यु के समय उनकी बेटी सिर्फ 14 साल की थीं। दोनों के बीच दुराव रहा। पिता ने अपनी क्रिएटिव व्यस्तताओं के बीच बेटी पर ध्यान नहीं दिया। मां भी नहीं चाहती थीं कि बेटी पिता के करीब जाए। सुखदेव का अपनी पत्

खानत्रयी (आमिर,शाह रुख और सलमान) का साथ आना

Image
अजय ब्रह्मात्मज किसी कार्यक्रम में खानत्रयी (आमिर, शाह रुख और सलमान) का साथ आना निस्संदेह रोचक खबर है। रजत शर्मा के टीवी शो ‘आप की अदालत’ की 21वीं वर्षगांठ पर आमिर, शाह रुख और सलमान तीनों दिल्ली में थे। वे एक साथ मंच पर आए। उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं। तीनों के प्रशंसक पहली बार सम्मिलित रूप से खुश हैं और समवेत स्वर में गा रहे हैं। तीनों के साथ आने का यह अवसर महत्वपूर्ण हो गया है। इस खबर को उस कार्यक्रम में आए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से अधिक कवरेज मिला है। हमारे दैनंदिन जीवन में मनोरंजन जगत की हस्तियों की बढ़ती दखल का यह लक्षण है। हम उन्हें देख कर खुश होते हैं। अपनी तकलीफें भूल जाते हैं। इस बार तो तीनों एक साथ आए। आमिर, शाह रुख और सलमान के इस सम्मिलन के बारे में कहा जा रहा है कि वे पहली बार एक साथ दिखे। इस खबर में सच्चाई है। शाह रुख-सलमान और आमिर-सलमान की फिल्में भी आ चुकी हैं, लेकिन तीनों एक साथ शायद ही कभी किसी कार्यक्रम में आए हों। ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता।साक्ष्य के लिए कोई तस्वीर नहीं है। दरअसल, पिछले आठ-दस सालों में मीडिया के प्रसार के

हर बार अलग अवतार में सोनाक्षी सिन्‍हा

Image
-अजय ब्रह्मात्मज  दो महीनों में सोनाक्षी सिन्हा की तीन फिल्में आएंगी। इनमें वह तीन पीढिय़ों के अभिनेताओं के साथ दिखेंगी। पहली फिल्म अजय देवगन के साथ ‘ऐक्शन जैक्सन’ है। उसके बाद दक्षिण के सुपर स्टार रजनीकांत के साथ ‘लिंगा’ आएगी और फिर 2015 की शुरूआत अर्जुन कपूर एवं मनोज बाजपेयी के साथ आ रही ‘तेवर’ से होगी। तीनों के विषय और परिदृश्य अलग हैं।     सोनाक्षी सिन्हा पहले ‘ऐक्शन जैक्सन’ की बात करती हैं,‘यह प्रभु देवा की फिल्म है। श्ह बहुत ही मसालेदार,एंटरटनिंग बौर ऐक्शन पैक्ड फिल्म है। इस फिल्म में पहली बार मेरे प्रशंसक मुझे वेस्टर्न ड्रेस में देखेंगे। चार सालों से लोग पूछ रहे थे कि मैं वेस्टर्न लुक में कब आऊंगी? तो लीजिए मैं आ गई। इस बार वे सभी खुश हो जाएंगे। इस फिल्म में मूरे चुने जाने की एक बड़ी वह मेरी कॉमिक टाइमिंग है। प्रभु देवा और अजय सर ने मुझे यही बताया। प्रभु और अजय दोनों के साथ पहले काम कर चुकी हैं। उन्हें लगा कि मैं रोल को संभाल पाऊंगी। बहुत ही फनी कैरेक्टर है मेरा। मैं ऐसी लडक़ी हूं,जिसका लक इतना खराब रहता है कि वह हमेशा फनी सिचुएशन में फंस जाती है। प्रभु देवा की फिल्म है तो सौंग

शालीन हास्‍य के अभिनेता देवेन वर्मा

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज 149 फिल्‍मों में काम कर चुके देवेन वर्मा का आज पूना में निधन हो गया। वे 78 साल के थे। 1961 से 2003 तक हिंदी फिल्‍मों में काम करने के बाद उन्‍होंने अभिनय से संन्‍यास ले लिया था। वक्‍त के साथ हिंदी फिल्‍मों में आए बदलाव के साथ वे तालमेल नहीं बिठा सके थे। उन्‍होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब कोई असिस्‍टैंट डायरेक्‍टर सिगरेट झाड़ते हुए शॉट के लिए बुलाने आती है तो अच्‍छा नहीं लगता। हमारे समय में कलाकारों की इज्‍जत थी। उम्र बढ़ने के साथ नई किस्म की फिल्‍मों में रोल मिलने भी कम हो गए थे। ऐसी स्थिति में देवेन वर्मा ने विश्राम करना ही उचित समझा। फिल्‍मों से उनका नाता टूट नहीं सकता था। वे पूना में दोस्‍तों के निजी थिएटर में फिल्‍में देखा करते थे। उन्‍हें ‘ विकी डोनर ’ बहुत अच्‍छी लगी थी। नए कलाकारों में उन्‍हें रणबीर कपूर सबसे ज्‍यादा पसंद थे।       देवेन वर्मा कच्‍छ के रहने वाले थेत्र उनके पिता बलदेव सिंह वर्मा का चांदी का कारोबार था। बड़ी बहन की पढ़ाई के लिए उनके माता-पिता पूना शिफ्ट कर गए थे। देवेन वर्मा को मिमिक्री का शौक था। पढ़ाई के सिलसिले में मुंबई आने के ब

फिल्में बड़ी होती हैं या फिल्ममेकर?

Image
अजय ब्रह्मात्मज आज एक खबर आई है कि करण जौहर ऐश्वर्या राय बच्चन, रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा के साथ 'ऐ दिल है मुश्किल' फिल्म का निर्देशन करेंगे। यह फिल्म 2016 में 3 जून को रिलीज होगी। इस खबर के आने के साथ सोशल मीडिया से लेकर फिल्म इंडस्ट्री के गलियारे में उन्हें बधाई देने के साथ चर्चा गर्म है कि चार सालों के बाद आ रही इस फिल्म में हम सोच और संवेदना के स्तर पर भिन्न करण जौहर को देखेंगे। यों यह खबर प्रायोजित है और फिल्म के प्रचार का पहला कदम है। पर चूंकि खबर में चार लोकप्रिय हस्तियां शामिल हैं,इसलिए मीडिया इसे स्वाभाविक रूप से महत्व देता रहेगा। अभी से अगले साल जून तक किसी न किसी रूप में 'ऐ दिल है मुश्किल' से संबंधित खबरें बनी रहेंगी। इन दिनों प्रतिभा और कौशल से अधिक लोकप्रियता को महत्व दिया जा रहा है। यही कारण है कि किसी भी नई फिल्म की चर्चा में फिल्म के विषय से अधिक स्टार और डायरेक्टर का जिक्र होता है। पिछले कुछ समय से लोकप्रियता का अहंकार फिल्मों की घोषणाओं और सूचनाओं में दिखने लगा है। ट्रेड और मार्केटिंग के पंडित इसे अपने प्रोडक्ट (यहां फिल्म) की प्ले