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63rd national film awards

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63rd NATIONAL FILM AWARDS FOR 2015 FEATURE FILMS S.No. Name of Award Name of Film Awardees Medal Citation & Cash Prize 1. BEST FEATURE BAAHUBALI Producer : SHOBU Swarna Kamal An imaginative film and FILM YARLAGADDA AND and monumental by its production ARKA values and cinematic brilliance MEDIAWORKS (P) 2,50,000/- in creating a fantasy world on LTD. each to screen. the Producer and Director : S.S Director RAJAMOULI (CASH COMPONENT TO BE SHARED) 2.

Artist’s domain is his work’-Balraj Sahni

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आज बलराज साहनी का जन्‍मदिन है। 1972 में उन्‍होंने जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया था। प्रकाश के रे ने इसे बरगद पर शेयर किया है। व‍हीं से इसे चवन्‍नी के पाठकों के लिए लिया जा रहा है। Balraj Sahni (1 May 1913–13 April 1973) was one of the most respectable film and theatre personalities of India.  This is the reproduction of his address delivered at Jawaharlal Nehru University (New Delhi) Convocation in 1972. We are grateful to Prof Chaman Lal, Jawaharlal Nehru University for making this text available. Balraj Sahni About 20 years ago, the Calcutta Film Journalists’ Association decided to honour the late Bimal Roy, the maker of Do Bigha Zameen, and us, his colleagues. It was a simple but tasteful ceremony. Many good speeches were made, but the listeners were waiting anxiously to hear Bimal Roy. We were all sitting on the floor, and I was next to Bimal Da. I could see that as his turn approached he became increasingly n

ताली तो बजाओ यारों - नवाजुद्दीन सिद्दीकी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज नवाजुद्दीन सिद्दीकी की जिंदगी में आन,बान और शान के साथ इत्‍मीनान भी आया है। वे सुकून और सुविधा से पसंद की फिल्‍में कर रहे हैं। उन्‍हें पिछले साल की फिल्‍मों के लिए कुछ अवार्ड मिले। मुंबई के यारी रोड इलाके में उन्‍होंने प्‍यारा से ऑफिस बनाया है,जो उनकी तरह ही औपचारिकताओं से दूर है। इसे उन्‍होंने खुद ही डिजाइन किया है। उनके ही शब्‍दों में कहें तो, ’ मैं हमेशा से चाहता था कि मेरा ऑफिस   ऐसा हो, जो ऑफिस   जैसा ना लगें। मुझे वहां पर सुकून   मिले। मैं यहां कैसे भी कहीं पर बैठ सकता हूं। इसे मैंने पुराने समय के बैठक का रूप दिया है। अगर ऑफिस   होता तो चेयर और टेबल होते। मैं चेयर पर बैठने में असहज महसूस करता हूं। ‘   -लगातार अवार्ड मिल रहे हें। ये   आपको खुशी के लावा और क्या देते हैं? 0 इतने सारे अवार्ड   हो गए हैं। अवार्ड   मिल जाने पर उतनी खुशी भी नहीं होती है। न मिले तो दुख कतई नहीं होता। इन अवार्ड समारोहों में दर्शक टिकट लेकर आते हें। उनकी रुचि अवार्ड से ज्‍यादा परफारमेंस में रहती मैंने देखा है कि अवार्ड मिलने पर कोई ताली भी नहीं बजाता है। बहुत

दरअसल : मनीष शर्मा की लगन और मेहनत

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-अजय ब्रह्मात्‍मज मनीष शर्मा निर्देशित ‘ फैन ’ की चौतरफा तारीफ हो रही है। शाह रुख खान के प्रशंसकों को उनका अभिनेता मिल गया है। कहा और माना जा रहा है कि एक अर्से के बाद शाह रुख खान ने अपनी योग्‍यता और क्षमता का सदुपयोग किया है। वे अनुभवी और समझदार अभिनेता हैं। उन्‍होंने सधे निर्देशकों के साथ बेहतरीन और यादगार फिल्‍में की हैं। वे फिल्‍में बाक्‍स आफिस पर भी चली हैं। अच्‍छी बात है कि वे घोर कमर्शियल फिल्‍में करते समय भी किसी शर्म या अपराध बोध से ग्रस्‍त नहीं रहते हैं। सुधी समीक्षकों और फिल्‍म प्रेमियों की अपने प्रिय कलाकारों से मांग रहती है कि वे केवल सार्थक फिल्‍मों मकें ही काम करें। गौर करें तो कोई भी कलाकार निरर्थक फिल्‍में नहीं करना चाहता। फिर भी यह सच्‍चाई है कि हिंदी फिल्‍मों का मुख्‍य उद्देश्‍य और लक्ष्‍य दर्शकों का मनोरंजन करना होता है। दशकों के प्रयोग और विस्‍तार से हिंदी फिल्‍मों का एक ढांचा बना गया है। अधिकांश फिल्‍मकार उसी ढांचे में काम करते हैं। एक बार सफल हो गए तो आगामी फिल्‍मों में उसी सफलता को दोहराना चाहते हैं। ‘ निर्देशक मनीष शर्मा की पहली फिल्‍म है ‘ फेन ’ । च