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दरअसल : एकाकी हैं करण जौहर

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दरअसल     एकाकी हैं करण जौहर -अजय ब्रह्मात्‍मज         करण जौहर की ‘ ऐन अनसुटेबल ब्‍वॉय ’ मीडिया में चर्चित है। इसके कुछ अंश विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे हैं। किताबों से वैसे रोचक प्रसंग लिए गए हैं, जहां करण जौहर अपने सेक्सुऐलिटी के बारे में नहीं बताना चाहते। वे सेक्स की बातें करते हैं, लेकिन अपने सेक्स ओरिएंटेशन को अस्पष्‍ट रखते हैं। उनकी अस्पष्‍टता के कई मायने निकाले जा रहे हैं। शायद पाठकों को मजा आ रहा होगा। करण जौहर बेहद स्मार्ट फिल्मी हस्ती हैं। उन्होंने दर्शकों और पाठकों को मुग्ध करने और अपने प्रति आकर्षित करने की कला सीख ली है। वह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पहली डिजाइनर पर्सनैलिटी हैं, जिनके बात-व्‍यवहार से लेकर चाल-ढाल और प्रस्तुति सब कुछ नपी-तुली होती है। उन्हें मालूम है कि उनका लेफ्ट प्रोफाइल ज्यादा अच्छा लगता है तो कैमरे के सामने आते ही वे हल्का सा दाहिना एंगल ले लेते हैं। फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा सधा व्‍यक्तित्व नहीं है। पत्र-पत्रिकाओं में शाह रुख खान से उनके संबंध और काजोल से बिगड़ते रिश्‍तों के विवरण के अंश भी प्रकाशित हुए। दरअसल, फिल्मों से संबंधित हर किस

हमने ही खींची हैं लकीरें - जैगम इमाम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज जैगम इमाम उत्‍तरप्रदेश के बनारस शहर के हैं। उनकी दूसरी फिल्‍म ‘ अलिफ ’ आ रही है। पत्रकार और लेखक जैगम ने पिछली फिल्‍म ‘ दोजख ’ की तरह इस बार भी अपने परिवेश की कहानी चुनी है। मुस्लिम समाज की पृष्‍ठभूमि की यह फिल्‍म अपनी पहचान पाने की एक कोशिश है। अभी देश-दु‍निया में मुसलमानों को लेकर अनेक किस्‍म के पूर्वाग्रह चल रहे हैं। ‘ अलिफ ’ उनसे इतर जाकर उस समाज की मुश्किलों और चाहतों की बात करती है। जैगम की यह जरूरी कोशिश है। -‍िपछली फिल्‍म ‘ दोजख ’ से आप ने क्‍या सीखा ? 0 ‘ दोजख ’ मेरी पहली फिल्‍म थी। मैं पत्रकारिता से आया था तो मेरा अप्रोच भी वैसा ही था। फिल्‍म की बारीकियों का ज्ञान नहीं था। उस फिल्‍म से मुझे महीन सबक मिले। मेरी पहली कोशिश को सराहना मिली। सिनेमा का तकनीकी ज्ञान बढ़ा। ‘ अलिफ ’ में कई कदम आगे आया हूं। - ‘ अलिफ ’ क्‍या है ? और यही फिल्‍म क्‍यों ? 0 ईमानदारी से कहूं तो मैं पॉपुलर लकीर पर चल कर पहचान नहीं बना सकता। मेरी फिल्‍म किसी से मैच नहीं करती। मैं अपने परिवेश की कहानी दिखाना चाहता हूं। मैं अपनी जमीन और मिट्टी लेकर आया हूं। इस फिल्‍म की

फिल्‍म समीक्षा : कुंगफू योगा

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जैकी चान की बॉलीवुड यात्रा कुंगफू योगा -अजय ब्रह्मात्‍मज भारत और चीन के संबंध सदियों पुराने हैं। बौद्ध धर्म ने दोनों देशों के आध्‍यात्मिक और राजनयिक संबंधों को बढ़ाया। भारत की आजादी और चीन की मुक्ति के बाद दोनों देशों के बीच भाई-भाई का नारा लगा, लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद संबंधों में खटास आ गई। सीमा विवाद की वजह से दोनों देशों के बीच संबंध पहले की तरह मजबूत और भरोसेमंद नहीं हो पा रहे हैं। दोनों देशों को करीब लाने में फिल्‍मों की अप्रत्‍यक्ष भूमिका है। लंबे समय तक भारतीय खास कर हिंदी फिल्‍में चीन में लोकप्रिय रही हैं। यह सिलसिला फिर से जुड़ा है। आमिर खान की ‘ 3 इडियट ’ और ‘ पीके ’ ने चीन में अच्‍छा कारोबार किया। सच है कि एक आम चीनी हिंदी फिल्‍मों के बारे में जितना जानता है, उतना आम भारतीय नहीं जानते। इस पृष्‍ठभूमि में जैकी चान का महत्‍व बढ़ जाता है। वे अपनी फिल्‍मों में भारत को और एक्‍सप्‍लोर कर रहे हैं। ‘ कुंगफू योगा ’ के पहले उन्‍होंने मल्लिका सहरावत के साथ ‘ द मिथ ’ भी बनाई थी। इस बार उन्‍होंने भारतीय कलाकार सोनू सूद, दिशा पाटनी और अमायरा दस्‍तूर को म

फिल्‍म समीक्षा - अलिफ

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फिल्‍म रिव्‍यू पढ़ना जरूरी है अलिफ -अजय ब्रह्मात्‍मज जैगम इमाम ने अपनी पिछली फिल्‍म ‘ दोजख ’ की तरह ही ‘ अलिफ ’ में बनारस की जमीन और मिट्टी रखी है। उन्‍होंने बनारस के एक मुस्लिम मोहल्‍ले के बालक अलिफ की कहानी चुनी है। अलिफ बेहद जहीन बालक है। शरारती दोस्‍त शकील के साथ वह एक मदरसे में पढ़ता है। कुरान की पढ़ाई के अलावा उनकी जिंदगी में सामान्‍य मौज-मस्‍ती है। लेखक व निर्देशक जैगम इमाम बहुत सादगी से मुस्लिम मोहल्‍ले की जिंदगी पर्दे पर ले आते हैं। बोली,तहजीब,तौर-तरीके और ख्‍वाहिशें.... ‘ मुस्लिम सोशल ’ की श्रेणी में यह फिल्‍म रखी जा सकती है,लेकिन यह नवाबों की उजड़ी दुनिया नहीं है। यह बनारस की एक आम बस्‍ती है,जो अपनी आदतों और रवायतों के साथ धड़क रही है। अलिफ की जिंदगी में तब हलचल मचती है,जब दशकों बाद उसकी फूफी पाकिस्‍तान से आ जाती हैं। दुखद अतीत की गवाह फूफी जहरा रजा आधुनिक सोच की हैं। उनकी निजी तकलीफों ने उन्‍हें जता दिया है कि दुनिया के साथ जीने और चलने में ही भलाई है। वह जिद कर अपने भतीजे अलिफ का दाखिला कवेंट स्‍कूल में करवा देती हैं। वह चाहती हैं कि वह बड़ा होकर डाक

देसी किरदार होते हैं मजेदार : भूमि पेडणेकर

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    -अजय ब्रह्मात्‍मज भूमि पेडणेकर अभी मुंबई में ‘ टॉयलेट-एक प्रेम कथा ’ की शूटिंग कर रही हैं। इसी फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में वे कुछ महीनों पहले मथुरा और आगरा में थीं। ‘ दम लगा के हईसा ’ की रिलीज के बाद से उनकी कोई फिल्म अभी तक नहीं आई है। इस बीच उन्होंने अपनी पहली फिल्म के हीरो आयुष्‍मान खुराना के साथ ही ‘ शभ मंगल सावधान ’ की शूटिंग पूरी कर ली है। आयुष्‍मान और भूमि दोनों ही आनंद एल रॉय प्रस्तुत इस फिल्म में नए रूप-रंग और अंदाज में दिखेंगे। ‘ शुभ मंगल सावधान ’ के निर्देशक प्रसन्ना हैं।     हमारी बात पहले ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ से ही शुरू होती है। इस फिल्म की घोषणा के समय से ही टायटल की विचित्रता के कारण जिज्ञासा बनी थी। ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ नीरज पांडे के प्रॉडक्‍शन की फिल्म है। इसे श्री नारायण सिंह निर्देशित कर रहे हैं। भूमि बताती हैं, ‘ ‘ आगरा और मथुरा में इस फिल्म की शूटिंग में बेहद मजा आया। साथ में अक्षय कुमार जैसे अभिनेता हों तो हर तरह की सुविधा हो जाती है। ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ रोमांटिक सटायर है। दर्शकों को यह यूनीक लव स्टोरी बहुत मजेदार लगेगी। फिल्

फिल्‍म समीक्षा - रईस

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फिल्म रिव्‍यू मोहरे हैं गैंगस्‍टर और पुलिसकर्मी रईस     -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्म के नायक शाह रुख खान हों और उस फिल्म के निर्देशक राहुल ढोलकिया तो हमारी यानी दर्शकों की अपेक्षाएं बढ़ ही जाती हैं। इस फिल्म के प्रचार और इंटरव्यू में शाह रुख खान ने बार-बार कहा कि ‘ रईस ’ में राहुल ( रियलिज्‍म ) और मेरी ( कमर्शियल ) दुनिया का मेल है। ‘ रईस ’ की यही खूबी और खामी है कि कमर्शियल मसाले डालकर मनोरंजन को रियलिस्टिक तरीके से परोसने की कोशिश की गई है। कुछ दृश्‍यों में यह तालमेल अच्छा लगता है, लेकिन कुछ दृश्‍यों में यह घालमेल हो गया है।     ‘ रईस ’ गुजरात के एक ऐसे किरदार की कहानी है, जिसके लिए कोई भी धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। ‘ बचपन में वह मां से पूछता भी है कि क्या यह सच है तो मां आगे जोड़ती है कि उस धंधे की वजह से किसी का बुरा न हो। ‘ रईस ’ पूरी जिंदगी इस बात का ख्‍याल रखता है। वह शराब की अवैध बिक्री का गैरकानूनी धंधा करता है, लेकिन मोहल्ले और समाज के हित में सोचता रहता है। यह विमर्श और विवाद का अलग विषय हो सकता है कि नशाबंदी वाले राज्य में शर

फिल्‍म समीक्षा - काबिल

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फिल्म रिव्‍यू काबिल इमोशन के साथ फुल एक्शन -अजय ब्रह्मात्‍मज     राकेश रोशन बदले की कहानियां फिल्मों में लाते रहे हैं। ‘ खून भरी मांग ’ और ‘ करण-अर्जुन ’ में उन्होंने इस फॉर्मूले को सफलता से अपनाया था। उनकी फिल्मों में विलेन और हीरो की टक्कर और अंत में हीरो की जीत सुनिश्वित होती है। हिंदी फिल्मों के दर्शकों का बड़ा समूह ऐसी फिल्में खूब पसंद करता है, जिसमें हीरो अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले। चूंकि भारतीय समाज में पुलिस और प्रशासन की पंगुता स्पष्‍ट है, इसलिए असंभव होते हुए भी पर्दे पर हीरो की जीत अच्छी लगती है। राकेश रोशन की नयी फिल्म ‘ काबिल ’ इसी परंपरा की फॉर्मूला फिल्म है, जिसका निर्देशन संजय गुप्ता ने किया है। फिल्म में रितिक रोशन हीरो की भूमिका में हैं।     रितिक रोशन को हम ने हर किस्म की भूमिका में देखा और पसंद किया है। उनकी कुछ फिल्में असफल रहीं, लेकिन उन फिल्मों में भी रितिक रोशन के प्रयास और प्रयोग को सराहना मिली। 21वीं सदी के आरंभ में आए इस अभिनेता ने अपनी विविधता से दर्शकों और प्रशंसकों को खुश और संतुष्‍ट किया है। रितिक रोशन को ‘ काबिल ’ लोकप्रियता के नए

तोड़ी हैं अपनी सीमाएं -शाह रूख खान

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‘ रईस ’ ने कंफर्ट से बाहर निकाला : शाह रुख खान नए साल में शाह रुख खान अलग सज और धज के आ रहे हैं। वे दर्शकों को ‘ रईस ’, ‘ द रिंग ’ और आनंद एल राय की फिल्म की सौगात देंगे , जो उनके टिपिकल अवतार से अलग है। वे ऐसा क्यों और किस तरह कर पाए , पढें खुद उनकी जुबानी     -अजय ब्रह्मात्‍मज वे बताते हैं , ’ मैंने अमूमन ऐसे किया है। हालांकि लोगों को सामयिक घटनाक्रम ही नजर आता है। ‘ रईस ’ भी उसी की बानगी है। दरअसल ‘ चेन्नई एक्सप्रेस ’, ‘ हैप्पी न्यू ईयर ’ और ‘ दिलवाले ’ साथ आ गईं थीं। हालांकि नहीं आनी चाहिए थीं। वह इसलिए कि मैंने ‘ हैप्पी न्यू ईयर ’ के बाद ‘ रईस ’ की थी। इसकी शूटिंग खत्म हो रही थी और हम हैदराबाद से ‘ दिलवाले ’ शुरू करने वाले थे। तब हम उसकी सिर्फ बल्गारिया वाले हिस्से की शूटिंग करने को थे , कि तभी ‘ फैन ’ आ गई। वह 40 दिनों की शूटिंग थी। इस बीच ‘ रईस ’ आगे खिसक गई। मेरा घुटना चोटिल हो गया। ‘ रईस ’ का 14-15 दिनों का काम बाकी रह गया। ‘ फैन ’ वीएफएक्स के चलते 11 महीने टल गई। तो कायदे से ‘ रईस ’ हैप्पी न्यू ईयर ’ के बाद ही आती , पर अब आई है। लिहाजा लोगों को लग रहा है कि

दरअसल : चित्रगुप्‍त की जन्‍म शताब्‍दी

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दरअसल.... चित्रगुप्‍त की जन्‍म शताब्‍दी -अजय ब्रह्मात्‍मज 2017 हुनरमंद संगीतकार चित्रगुप्‍त का जन्‍म शताब्‍दी वर्ष है। इंटरनेट पर उपलब्‍ध सूचनाओं के मुताबिक उन्‍होंने 140 से अधिक फिल्‍मों में संगीत दिया। बिहार के गोपालगंज जिले के कमरैनी गांव के निवासी चित्रगुप्‍त का परिवार अध्‍ययन और ज्ञान के क्षेत्र में अधिक रुचि रखता था। चित्रगुप्‍त के बड़े भाई जगमोहन आजाद चाहते थी। उनका परिवार स्‍वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ा था। कहते हैं चित्रगुप्‍त पटना के गांधी मैदान की सभाओं में हारमोनियम पर देशभक्ति के गीत गाया करते थे। बड़े भाई के निर्देश और देखरेख में चित्रगुप्‍त ने उच्‍च शिक्षा हासिल की। उन्‍होंने डबल एमए किया और कुछ समय तक पटना में अध्‍यापन किया। फिर भी उनका मन संगीत और खास कर फिल्‍मों के संगीत से जुड़ रहा। आखिरकार वे अपने दोस्‍त मदन सिन्‍हा के साथ मुंबई आ गए। उनके बेटों आनंद-मिलिंद के अनुसार चित्रगुप्‍त ने कुछ समय तक एसएन त्रिपाठी के सहायक के रूप में काम किया। उन्‍होंने पूरी उदारता से चित्रगुप्‍त को निखरने के मौके के साथ नाम भी दिया। आनंद-मिलिंद के अनुसार बतौर संगीतकार चित्रग