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फिल्‍म समीक्षा : टॉयलेट- एक प्रेम कथा

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फिल्‍म रिव्‍यू शौच पर लगे पर्दा टॉयलेट एक प्रेम कथा -अजय ब्रह्मात्‍मज जया को कहां पता था कि जिस केशव से वह प्‍यार करती है और अब शादी भी कर चुकी है...उसके घर में टॉयलेट नहीं है। पहली रात के बाद की सुबह ही उसे इसकी जानकारी मिलती है। वह गांव की लोटा पार्टी के साथ खेत में भी जाती है,लेकिन पूरी प्रक्रिया से उबकाई और शर्म आती है। बचपन से टॉयलेट में जाने की आदत के कारण खुले में शौच करना उसे मंजूर नहीं। बिन औरतों के घर में बड़े हुआ केशव के लिए शौच कभी समस्‍या नहीं रही। उसने कभी जरूरत ही नहीं महसूस की। जया के बिफरने और दुखी होने को वह शुरू में समझ ही नहीं पाता। उसे लगता है कि वह एक छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही है। दूसरी औरतों की तरह अपने माहौल से एडजस्‍ट नहीं कर रही है। यह फिल्‍म जया की है। जया ही पूरी कहानी की प्रेरक और उत्‍प्रेरक है। हालांकि लगता है कि सब कुछ केशव ने किया,लेकिन गौर करें तो उससे सब कुछ जया ने ही करवाया। ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ रोचक लव स्‍टोरी है। जया और केशव की इस प्रेम कहानी में सोच और शौच की खल भूमिकाएं हैं। उन पर विजय पाने की कोशिश और कामयाबी में ही जया

रोज़ाना : ’चक दे! इंडिया’ के दस साल

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रोज़ाना ’ चक दे ! इंडिया ’ के दस साल -अजय ब्रह्मात्‍मज यह 2007 की बात है। यशराज फिल्‍म्‍स ने एक साल पहले कबीर खान निर्देशित ‘ काबुल एक्‍सप्रेस ’ का निर्माण किया था। फिल्‍म तो अधिक नहीं चली थी,लेकिन उसे अच्‍छी तारीफ मिली थी। उन्‍हें लगा था कि प्रेकानियों से इतर फिल्‍में भी बनायी जा सकती हैं। तब तक जयदीप साहनी यशराज की टीम में शामिल हो चुके थे। वे कुछ दिनों से भारत की महिला हाकी टीम पर रिसर्च कर रहे थे। उन्‍होंने बातों-बातों में आदित्‍य चोपड़ा को अपने विषय के बारे में बताया था। तब तक जयदीप साहनी ने तय नहीं किया था कि वे किताब लिखंगे या फिल्‍म। आदित्‍य चोपड़ा के प्रोत्‍साहन ने जयदीप साहनी को हौसला दिया। उन्‍होंने एक मुश्किल फिल्‍म लिखी। हालांकि फिल्‍म में शाह रूख खान थे,लेकिन उनके साथ कोई एक हीरोइन नहीं बल्कि लड़कियों की जमात थी। उन लड़कियों को लेकर उन्‍हें भारत की महिला हाकी टीम के कोच के रूप में ऐसी टीम तैयार करनी थी,जो जीत कर लौटे। यह आदित्‍य चोपड़ा की हिम्‍मत और शाह रूख खान का विश्‍वास ही था कि लेखक जयदीप साहनी और निर्देशक शिमित अमीन भारत की एक यादगार फिल्‍म पूरी

रोजाना : खारिज करने का दौर

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रोजाना खारिज करने का दौर -अजय ब्रह्मात्‍मज बकवास...बहुत बुरी फिल्‍म है...क्‍या हो गया है शाह रूख को...इम्तियाज चूक गए। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ के बारे में सोशल मीडिया की टिप्‍पणियों पर सरसरी निगाह डालें तो यही पढ़ने-सुनने को मिलेगा। हर व्‍यक्ति इसे खारिज कर रहा है। ज्‍यादातर के पास ठोस कारण नहीं हैं। पूछने पर वे दाएं-बाएं झांकने लगते हैं। यह हमारे दौर की खास प्रवृति है। किसी स्‍थापित को खारिज करो। पहले मूर्ति बनाओ। फिर पूजो और आखिरकार विसर्जन कर दो। हम अपने देवी-देवताओं के साथ यही करते हैं। फिल्‍म स्‍टारों के प्रति भी हमारा यही रवैया रहता है। थिति इतनी नकारत्‍मक हो चुकी है कि अगर आप ने फिल्‍म के बारे में कुछ पाम्‍जीटिव बातें कीं तो ये स्‍वयंभू आलोचक(दर्शक) आप से ही नाराज हो जाएंगे और ट्रोलिंग होने लगेगी1 ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ सामान्‍य मनोरंजक फिल्‍म है। सच्‍चाई क्‍या है ? हिंदी फिल्‍मों के ढांचे में जकड़ी यह फिल्‍म किसी सा‍हसिक प्रयोग से बचती है। इम्तियाज अली ने खुद की रोचक शैली विकसित कर ली है। यह उसी शैली की फिल्‍म है। उनके किरदारों(प्रेमियों) का बाहरी विरोध नहीं होता।

रोज़ाना : फिल्‍म प्रचार की नित नई युक्तियां

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रोज़ाना फिल्‍म प्रचार की नित नई युक्तियां -अजय ब्रह्मात्‍मज हाल ही में अनुपम खेर ने अपनी नई फिल्‍म ‘ रांची डायरीज ’ के पोस्‍टर जारी किए। इस इवेंट के लिए उन्‍होंने मुंबई के उपनगर में स्थित खेरवाड़ी को चुना। 25-30 साल पहले यह फिल्‍मों में संघर्षरत कलाकारों की प्रिय निम्‍न मध्‍यवर्गीय बस्‍ती हुआ करती थी। कमरे और मकान सस्‍ते में मिल जाया करते थे। मुंबई में अनुपम खेर का पहला ठिकाना यहीं था। यहीं 8 x 10 के एक कमरे में वे चार दोस्‍तों के साथ रहते थे। उनकी नई फिल्‍म ‘ रांची डायरीज ’ में छोटे शहर के कुछ लड़के बड़े ख्‍वाबों के साथ जिंदगी की जंग में उतरते हैं। फिल्‍म की थीम अनुपम खेर को अपने अतीत से मिलती-जुलती लगी तो उन्‍होंने पहले ठिकाने को ही इवेंट के लिए चुना लिया। इस मौके पर उन्‍होंने उन दिनों के बारे में भी बताया और अपने संघर्ष का जिक्र किया। प्रचार के लिए अतीत के लमहों को याद करना और सभी के साथ उसे शेयर करना अनुपम खेर को विनम्र बनाता है। प्रचारकों को अवसर मिल जाता है। इसी बहाने चैनलों और समाचार पत्रों में अतिरिक्‍त जगह मिल जाती है। इन दिनों प्रचारको को हर नई फिल्‍म के साथ

गूगल बता रहा है गंभीर है समस्‍या - अक्षय कुमार

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स्‍वच्‍छता अभियान की पृष्‍ठभूमि में एक प्रेहम कथा -अजय ब्रह्मात्‍मज अक्षय कुमार की टॉयलेट एक प्रेम कथा रिलीज हो रही है। हाल ही में इस फिल्‍म के पांच टीजर रिलीज किए गए,जिनसे फिल्‍म का फील मिल रहा है। यह एहसास बढ़ रही है कि अक्ष्‍य कुमार की यह फिल्‍म मनोरंजक लव स्‍टोरी होने के साथ ही एक जरूरी संदेश भी देगी। संदेश है स्‍वच्‍छता का,संडास का...हम सभी की दैनिक नित्‍य क्रियाओं में सबसे महत्‍वपूर्ण और आवश्‍यक शौचालय की उचित चर्चा नहीं होती। अक्षय कुमार की इस फिल्‍म ने शौचालय की जरूरत और अभियान की तरफ सभी का ध्‍यान खींचा है। रिलीज से पहले अक्षय कुमार इस फिल्‍म के प्रचार के लिए सभी प्‍लेटफार्म का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। उनसे यह बातचीत फिल्‍मसिटी से जुहू स्थित उनके आवास की यात्रा के दौरान हुई। -देश में अभी स्‍वच्‍छता अभियान चल रहा है। आप की फिल्‍म ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ का विषय भी स्‍वच्‍छता से जुड़ा है। क्‍या उस अभियान और इस फिल्‍म में कोई संबंध है ? 0 स्‍वच्‍छता,क्लीनलीनेस,टॉयलेट...या संडास कह लें। कुछ भी कहें और करें...मकसद एक ही है कि भारत को स्‍वच्‍छ करना है। अभी वह सबसे महत्

फिल्‍म समीक्षा : जब हैरी मेट सेजल

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फिल्‍म रिव्‍यू मुकम्‍मल सफर जब हैरी मेट सेजल -अजय ब्रह्मात्‍मज इम्तियाज अली की फिल्‍मों का कथ्‍य इरशाद कामिल के शब्‍दों में व्‍यक्‍त होता है। उनकी हर फिल्‍म में जो अव्‍यक्‍त और अस्‍पष्‍ट है,उसे इरशाद कामिल के गीतों में अभिव्‍यक्ति और स्‍पष्‍टता मिलती है। फिल्‍मों में सगीत और दृश्‍यों के बीच पॉपुलर स्टारों की मौजूदगी से गीत के बालों पर ध्‍यान नहीं जाता। हम दृश्‍यों और प्रसंगों में तालमेल बिठा कर किरदारों को समझने की कोशिश करते रहते हैं,जबकि इरशाद इम्तियाज के अपेक्षित भाव को शब्‍दों में रख चुके होते हैं। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ के पहले गीत में ही हरिन्‍दर सिंह नेहरा उर्फ हैरी अपने बारे में कहता है ... मैं तो लमहों में जीता चला जा रहा हूं मैं कहां पे जा रहा हूं कहां हूं ? .............. ............... जब से गांव से मैं शहर हुआ इतना कड़वा हो गया कि जहर हुआ इधर का ही हूं ना उधर का रहा सालों पहले पंजाब के गांवों से यूरोप पहुंचा हैरी निहायत अकेला और यादों में जीता व्‍यक्ति है। कुछ है जो उसे लौटने नहीं दे रहा और उसे लगातार खाली करता जा रहा है। उसका कोई स्‍थ

रोज़ाना : दर्शकों तक नहीं पहुंचती छोटी फिल्‍में

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रोज़ाना दर्शकों तक नहीं पहुंचती छोटी फिल्‍में -अजय ब्रह्मात्‍मज बड़े बिजनेश के लोभ में बड़ी फिल्‍मों को बड़ी रिलीज मिलती है। यह दस्‍तूर पुराना है। सिंगल स्‍क्रीन के जमाने में एक ही शहर के अनेक सिनेमाघरों में पॉपुलर फिल्‍में लगाने का चलन था। फिर स्‍टेशन,बस स्‍टेशन और बाजार के पास के सिनेमाघरों में वे फिल्‍म हफ्तों चलती थीं। दूसरे सिनेमा घरों में दूसरी फिल्‍मों को मौका मिल जाता थो। सिंगल स्‍क्रीन में भी सुबह के शो पैरेलल,अंग्रेजी या साउथ की डब फिल्‍मों के लिए सुरक्षित रहते थे। कम में ही गुजारा करने के भारतीय समाज के दर्शन से फिल्‍मों का प्रदर्शन भी प्रेरित था। हर तरह की नई और कभी-कभी पुरानी फिल्‍मों को भी सिनेमाघर मिल जाते थे। तब फर्स्‍ट डे फर्स्‍ट शो या पहले वीकएंड में ही फिल्‍में देखने की हड़बड़ी नहीं रहती थी। छोटी फिल्‍में हफ्तों क्‍या महीनों बाद भी आती थीं तो दर्शक मिल जाते थे। मल्‍टीप्‍लेक्‍स आने के बाद ऐसा लगा था कि छोटी फिल्‍मों को प्रदर्शन का स्‍पेस मिल जाएगा। शुरू में ऐसा हुआ भी,लेकिन धीरे-धीरे ज्‍यादा कमाई के लिए मल्‍टीप्‍लेक्‍स मैनेजर बड़ी फिल्‍मों को ज्‍यादा श

दरअसल : खानत्रयी का आखिरी रोमांटिक हीरो

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दरअसल.... खानत्रयी का आखिरी रोमांटिक हीरो -अजय ब्रह्मात्‍मज दोनों पैरों के बीच खास दूरी बना कर ऐंठते हुए वे जब अपनी बांहों को फैला कर ऊपर की ओर उठाते हैं तो यों लगता है कि वे पूरी दुनिया को उसमें समोने के लिए आतुर है। उनका यह रोमांटिक अंदाज ै।इतना पॉपुलर है कि कोई भी निर्देशक इसे दोहराने से नहीं बचता। शाह रूख खान भी सहर्ष तैयार हो जाते हैं। अब तो इवेंट और शो में भी उनसे फरमाईश होती है कि इस क्‍लासिक रोमांटिक अंदाज में वे अपनी तस्‍वीर उतारने दें। गौर करेंगे इस पोज में वे दायीं तरफ देख रहे होते हैं और कैमरा भी दायीं तरफ ही रहता हैं। उनके होंठो पर आकर्षक टेढ़ी मुस्‍कान रहती है। वे खुली बांहों से सभी को निमंत्रण दे रहे होते हैं। अब तो उनकी मिमिक्री कर रहे कलाकार भी उनके इस अंदाज से वाहवाही बटोर लेते हैं। आज रिलीज हो रही ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ में इम्तियाज अली ने अगर उनके इस अंदाज को दोहराया होगा तो कोई जुर्म नहीं किया होगा। दर्शक तो मुग्‍ध ही होंगे। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ रोमांटिक फिल्‍म होने का अहसास दे रही है। वैसे भी शाह रुख खान कह ही चुके हैं कि इम्तियाज अली नए जमाने के

जिंदगी और साहित्‍य के अनुभव हैं मेरी फिल्‍मों में –इम्तियाज अली

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जिंदगी और साहित्‍य के अनुभव हैं मेरी फिल्‍मों में – इम्तियाज अली -अजय ब्रह्मात्‍मज इम्तियाज़ अली अपनी नई फिल्म के साथ प्रस्तुत हैं।इस बार वे शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा के साथ ' जब हैरी मेट सेजल ' लेकर आ रहे हैं। रोमांस और प्रेम की फिल्मों से 21 वीं सदी में खास पहचान बना चुके इम्तियाज़ इस बार कुछ अलग अंदाज़ में अपनी खोज के साथ मौजूद हैं। हमारी सीधी बातचीत फ़िल्म के बारे में... - बताएं ' जब हैरी मेट सेजल ' क्या है ? 0 यह सफर की कहानी है।कहानी बहुत सिंपल है। बहुत सीधी और थीं लाइन है। हैरी ( शाह रुख खान) यूरोप में ट्रेवल गाइड है। वह पंजाब का मूल निवासी है , लेकिन पिछले कई सालों से यूरोप में है। वह टूर गाइड है। पिछले टूर की एक लड़की उनके पास वापस आती है। उसकी अंगूठी खे गई है। अंगूठी ढूंढने में वह हैरी की मदद चाहती है। हैरी हैरान भी होता है कि मैं कैसे मदद कर सकता हूं। वह कहती है कि आप ही ले गए थे। आप को मालूम है कि हम कहां-कहां गए थे। अंगूठी की खोज में दोनों की बाहरी और अंदरूनी जर्नी पर है यह फिल्‍म। वे खुद के बारे में क्‍या डिस्‍कवर करते हैं और इनका रि

फिल्‍म समीक्षा : गुड़गांव

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फिल्‍म रिव्‍यू सटीक परिवेश और परफारमेंस गुड़गांव -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍में संवादों पर इतनी ज्‍यादा निर्भर हो चुकी हैं और उनकी दर्शकों को ऐसी आदत पड़ गई है कि किसी फिल्‍म में निर्देशक भाव,संकेत और मुद्राओं से काम ले रहा हो तो उनकी बेचैनी बढ़ने लगती है। दर्श्‍क के तौर पर हमें चता नहीं चलता कि फिल्‍म हमें क्‍यो अच्‍छी नहीं लग रही है। दरअसल,हर फिल्‍म ध्‍यान खींचती है। एकाग्रता चाहिए। दर्शक्‍ और समीक्षक इस एकाग्रता के लिए तैयार नहीं हैं। उन्‍हें अपने मोबाइल पर नजर रखनी है या साथ आए दर्शक के साथ बातें भी करनी हैं। आम हिंदी फिल्‍मों में संवाद आप की अनावश्‍यक जरूरतों की भरपाई कर देते हैं। संवादों से समझ में आ रहा होता है कि फिल्‍म में क्‍या ड्रामा चल रहा है ? माफ करें, ‘ गुड़गांव ’ देखते समय आप को फोन बंद रखना होगा और पर्देपर चल रही गतिविधियों पर ध्‍यान देना होगा। नीम रोशनी में इस फिल्‍म के किरदारों की भाव-भंगिमाओं पर गौर नहीं किया तो यकीनन फिल्‍म पल्‍ले नहीं पड़ेगी। शंकर रमन की ‘ गुड़गांव ’ उत्‍कृष्‍ट फिल्‍म है। दिल्‍ली महानगर की कछार पर बसा गांव ‘ गुड़गांव ’ ज